
इधर नव वर्ष ने मुस्कान की पहली किरण बिखेरी ही थी कि इस पर अंग्रेजियत का ठप्पा लगाकर आपत्ति दर्ज़ होने लगी। जब सारे सरकारी, गैर-सरकारी कामकाज इन्हीं तिथियों और समय के आधार पर तय है तो ऐसे में यह विरोध बचकानेपन के प्रमाण के अतिरिक्त और क्या है? वैसे भी सब इसे मनाकर प्रसन्न ही तो हो रहे हैं, इसमें किसी का क्या नुकसान? आजकल के व्यस्त और त्रस्त जीवन में ये त्योहार और तारीख़ें अगर थोड़ी राहत और मुस्कुराने का अवसर देते हैं तो ऐसे हर पर्व का स्वागत होना चाहिए। विश्वबंधुत्व का भाव रखने वाले देश में इस बात से क्या फ़र्क़ पड़ता है कि कौन सा उत्सव कहाँ का है! शुभ दिन उल्लास देते हैं, कुछ लेते नहीं किसी से! इन्हें पूरी तरह दिल से मनाये जाने में कोई हर्ज़ नहीं! हमारी परम्पराएँ और प्रथाएं अपनी जगह सुरक्षित हैं...
प्रीति अज्ञात