दोपहर की धूप में........!
एक तरफ 'पर्यावरण दिवस' को जोर-शोर से मनाये जाने की चर्चा है, जगह-जगह वृक्षारोपण किया जा रहा है वहीँ दूसरी ओर चिलचिलाती धूप, असहनीय गर्मी और वर्ष-दर-वर्ष बढ़ रहा तापमान इस दिशा में किये जा रहे प्रयासों की सफलता को लेकर मन आशंकित भी करता है। कहीं 'ग्लोबल वार्मिंग' से लड़ने के लिए वृक्ष लगाए जा रहे हैं तो कहीं आधुनिकता और विकास के नाम पर गगनचुम्बी इमारतों का निर्माण, जंगलों को निर्ममता से काट फेंकने पर परहेज़ नहीं करता। पर्यावरण संतुलन बनाये रखने के लिए व्यक्ति विशेष की भागीदारी अब नितांत ही आवश्यक बन पड़ी है।
हर मौसम आता है-जाता है, पर ग्रीष्म जैसे यहीं ठहर जाता है। लम्बे, उबाऊ, नीरस दिन-रात अब उतने आनंददायक नहीं लगते। मन-मस्तिष्क दोनों ही शिथिल हैं, यात्रा और अपनी...
प्रीति अज्ञात