समय कब और कैसे बीतता जाता है, पता ही नहीं चलता. प्रतिदिन हम कुछ कार्यों को यह कहकर टाल देते हैं कि अभी समय नहीं. पर क्या यही एकमात्र सत्य होता है ? वास्तविकता तो यह है कि वे कार्य या तो हमारी प्राथमिकता सूची का हिस्सा नहीं या फिर उनको करने की हमारी मंशा ही नहीं होती. तो फिर इस सच्चाई को स्वीकार कर, ये बात निस्संकोच कह ही देनी चाहिए. इससे आप स्वयं को दोषी मानकर हुए अपराध-बोध से बच सकते हैं और किसी की नज़रों में गिरने से भी. छोटी-छोटी बातें ही मन में घर कर लेती हैं, कब यह एक गाँठ बनकर रिश्तों को फाँसी दे दे, पता भी नहीं चलता. सच की स्वीकारोक्ति से बेहतर कुछ भी नहीं, सिर्फ़ अपना ही नहीं, कईयों का जीवन संवर जाता है और संबंधों में मधुरता भी बरक़रार रहती है.
खून का रिश्ता, स्वत: ही मिलता है,...
प्रीति अज्ञात