
आज 'अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस' के अवसर पर 'हस्ताक्षर' का प्रवेशांक आप सभी को समर्पित है। यूँ तो हर दिन स्त्री का ही होता है। वो एक ममतामयी माँ बनकर, अपने बच्चों के लिए अपना पूरा जीवन समर्पित कर देती है तो भाई की प्यारी बहिना बनकर अपने हिस्से की वस्तु भी उसे वर्षों से देती आयी है। प्रेयसी के रूप में अपने प्रिय के लिए सारी दुनिया से लड़ जाती है और पत्नी बन, अपना पीहर छोड़ एक नए जीवन में बेझिझक प्रवेश कर जाती है। वो सहनशील है तो शक्तिसंपन्न भी, स्नेह का पर्याय है पर आवश्यकता पड़ने पर मौत से भी जूझ जाती है, स्वाभिमानी है पर अपनों के लिए हमेशा झुकती आयी है, उसे अपने कर्त्तव्यों का पूरा भान है लेकिन वो अपने अधिकारों के लिए सचेत भी है।
नारी की महत्ता में न जाने कितने ग्रन्थ लिखे गए, इसके हर र...
प्रीति अज्ञात