कविताएँ
मोनालिसा
क्या था उस दृष्टि में
उस मुस्कान में
कि मन बंध कर रह गया
वह जो बूंद छिपी थी
आँख की कोर में
उसी में तिर कर
जा पहुँची थी
मन की अतल गहराइयों में
जहाँ एक आत्मा हतप्रभ थी
प्रलोभन से
पीड़ा से
ईर्ष्या से
द्वन्द्व से
वह जो ना-मालूम सी
जरा सी तिर्यक
मुस्कान देखते हो न
मोनालिसा के चेहरे पर
वह एक कहानी है
औरत को
मिथक में बदले जाने की कहानी
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औरत
रेगिस्तान की तपती रेत पर
अपनी चुनरी बिछा
उस पर लोटा भर पानी
और उसी पर रोटियाँ रख कर
हथेली से आँखों को छाया देते हुए
औरत ने
ऐन सूरज की नाक के नीचे
एक घर बना लिया
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द्रौपदी
द्रौपदी के बालों से खून बह रहा है दुःशासन का
चेहरा मसृण और आँखों में मद है
हाथ हवा में परछाइयाँ बना रहे हैं
एक रथ दीवार पर उकेरा जाता है
घोड़े लगाम छुड़ा कर भागे जा रहे हैं
टेढ़ा गांडीव धरा पर पड़ा है
अश्वथामा द्रौपदी के पाँचों बेटों के सर उठाए दौड़ा चला जाता है
रक्त के तालाब में छिपे दुर्योधन की हँसी गूँजी
और जा मिली पितामह के कराहों में
पहाड़ पर रखा बर्बरीक का सिर लुढ़क गया है
कोई नहीं देखता इस समर को
छोड़ धृतराष्ट्र के
जिसकी भुजाएँ मचल रही हैं
भीम का आलिंगन करने को
हाड़-माँस का इंसान कोई कहाँ बचा
सभी लोहे के पुतलों में बदल गए हैं
– सुमन केशरी