कविता-कानन
स्त्री को अलग मत करना
पृथ्वी से अलग कर दो
किसी दिन स्त्रियों को
फिर देखना
फूलों से अलग हो जायेगी गन्ध,
पेड़ों से खिसक जायेंगे
घोंसलें,
नदियों में नहीं उठेंगी लहरें,
सीप में नहीँ बनेंगे मोती,
तितलियों के पंख से छुट जाएगा रंग,
चन्द्रमा की रोशनी से ग़ायब हो जायेगा दुधियापन,
बर्फ में उतर जायेगी आग की लपट,
पर्वतों के नीचे से खिसक जायेगा पृथ्वी का आधार,
समन्दर धीरे-धीरे निगलते जाएँगे सारे घरौंदे
और
बच्चे भूल जाएँगे हँसना
होंठ भूल जाएँगे चूमना
एक स्त्री को अलग करने से
अलग हो जाती है
कई सारी चीजें
यहाँ तक की धरती भी अलग हो जाती है आकाश से
आदमी
अलग हो जाता है अपनी त्वचा की नमी से
स्त्री को अलग मत करना
स्त्री को पृथ्वी के साथ रहने देना
अन्यथा
ख़त्म हो जाएगी किसी दिन
पृथ्वी
अंतरिक्ष में रह जाएगा सिर्फ चाँद अकेला
************************
ख़ुशी
एक माँ
आटे से अपने बच्चे के लिए
रोटी बनाती है।
बच्चा उस आटे से
अपनी माँ के लिए
चिड़िया, अंडा और घोंसला बना देता है।
बच्चा रोटी खा कर खुश है
और
माँ
आटे की चिड़िया, अंडा और घोंसला देख कर ख़ुश है।
************************
प्यार
बार-बार चिल्ला कर यह कहना कि
हम तुम्हें बहुत प्यार करते हैं
पर तुम्हें दिखाई नहीं देता
यह भी प्यार में मिला
एक धोखा है।
प्यार चीखकर कहने भर का विषय नहीं
निस्वार्थ भाव से देने का
एक मौन उपक्रम है।
जिसने कहा देखो
इस फूल को मैंने बोया
मैं ही इसके लिए गमला लाया
वहाँ पर प्यार मर जाता है
सिर्फ अधिकार जीवित रहता है।
प्यार चिड़िया का दाना चुगना
और अपने बच्चे की चोंच में वह दाना चुगाना है।
प्यार गाय का अपने बछड़े को
अंतिम बच्चा दूध अपने थन से पिलाना है
प्यार नहीं सिर्फ चिड़िया को दाना डालना
या गाय को पाल कर उसका दूध निकालना।
प्यार पर्वत से फूटते एक सोते का
एक नदी में अनुवाद है
समुद्र से उठी भाप का
बरसात में रूपान्तरण है।
प्यार बिना कवि का नाम देखे
उसकी पहली कविता को जी भरकर पढ़ने का सुख है।
– पवन कुमार वैष्णव