कविताएँ
समाज
समाज
गुज़र रहा है
अनेक परिवर्तनों से
रख चुका आँच पर
सभी रूढ़ियों को
महिला होने का अर्थ
अब बदल रहा है
समाज
मंढने में व्यस्त है
आज
एक नयी बुनियाद
एक नया विश्वास
आधुनिक सोच की नींव पर
किन्तु यही समाज
राख हो चुकी रूढियों की
कालिख धो पाने में
आज भी असमर्थ है
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शीतल स्पर्श
माँ का एहसास
व्याप्त है आज भी
इस कमरें के
प्रत्येक कोने में
मुस्कान तैरती भीतर
इस कमरे के
एक जोड़ी आँखें
निहारती मुझको
ईंटों के मध्य लिपे
गारे में से
दुलारती मुझे हर समय
मैनें पाया है
माँ की अकुलाहट को
सुख देती
शीतल हवा से हिलते
वस्त्रों में
माँ के स्नेह को
दीवार से लटकी मूक तस्वीरों में
माँ का अपनापन
क्या नहीं रेंगता मुझमें
प्राणवायु बनकर?
माँ
आज नहीं रही
किन्तु
जीवित है आज भी
उसके पदचिह्न फर्श पर
उसका शीतल स्पर्श
मेरे श्वेत मन पर
– रोनी ईनोफाइल