गीत
सच है हम को प्यार नहीं है
पग-पग कंकड़ शूल बिछाकर
खुद को खोकर तुम को पाकर
पावन प्रणय सम्बन्धों वाला
आँखों में संसार नही है
सच है हम को प्यार नहीं है
खड़ा अकेले चौराहे पर
रस्ता देख रहा है घर
वर्षों बीत गए पर हमने
दीप धरा न चौखट पर
बादल जैसे घिरा अँधेरा
दिनकर है उजियार नहीं है
सच है हम को प्यार नही है
मन की प्यास बुझा रे प्यारे
आँसू पीकर खारे-खारे
सूत से पतली पगडंडी पर
फिरता है क्यों मारे-मारे
प्रीत नई हो राह पुरानी
यह हम को स्वीकार नही है
सच है हम को प्यार नही है
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गीत मेरे न मौन रहेंगें
मुझको मौन करा लो किन्तु
गीत मेरे न मौन रहेंगें
आँसू बनकर साथ बहेँगे
उन अधरों पर बातें रखकर
सुख दु:ख की सौगातें रखकर
हमने पागलपन है पाया
दिन को गिरवी रातें रखकर
अब केवल गीतों से अपने
पीर सुनेंगें पीर कहेंगें
गीत मेरे न मौन रहेंगे
गलियों घाटों में खो जाते
हम भी बंजारे हो जाते
बाँध चुनरिया चादर ओढ़े
तपते सहरा में सो जाते
कर लेंगें दो बातें खुद से
दो बातें तुम से कह लेंगें
गीत मेरे न मौन रहेंगें
महफ़िल-महफ़िल गीत सुनाते
होंठों से कुछ क़र्ज़ चुकाते
हर दिन नाम तुम्हारा लेकर
रो पड़ते हैं हँसते-गाते
व्याकुल मन की चिंताओं को
जाने कैसे प्रश्न मिलेंगें
गीत मेरे न मौन रहेंगें
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इक अधूरे गीत का हर एक बिम्ब
एक पूरी दास्ताँ से भर गया
प्रेम का जो हो रहा था सारथी
रात को जीकर सुबह को मर गया
सीप मोती खो रहे थे और तुम
जब नहीं थे आसुओं का साथ था
दर्द से दामन बचाये यार मैं
शोर में भी जी रहा चुपचाप था
इक पुराना पत्र पाकर क्यों भला
आज अपनी ही सुधि से डर गया
प्रेम का जो हो रहा था सारथी
रात को जीकर सुबह को मर गया
साज़ जीवन का तुम्हें मैं सौंपकर
गीत ग़ज़लों पर तुम्हारी तान लूँ
और मन ये कह रहा खोकर तुम्हें
पीर की सब पीढ़ियों को जान लूँ
भोर होने पर था मेरे साथ जो
साँझ होते ही वो राही घर गया
प्रेम का जो हो रहा था सारथी
रात को जीकर सुबह को मर गया
पीर मन की जान लो ये मान लो
मौन चेहरा है तुम्हारा आजकल
उर्मिला सा काट लूँ तुम बिन समय
दो लखन के त्याग सा जो एक पल
पूर्ण अपने त्याग का वनवास कर
इक अमर जीवित कहानी कर गया
प्रेम का जो हो रहा था सारथी
रात को जीकर सुबह को मर गया
– अर्पित अदब