कविताएँ
जीवन एक किताब
जीवन एक किताब अधूरी-सी
आने वाला हर दिन
एक कोरा पन्ना
हर दिन लिखती हूँ
भावों की इबारतें
कभी भरती हूँ
आशाओं की सरिता
प्रवाहों के बीच पड़े
बड़े-बड़े पत्थर
उन पर जमी
वक़्त की काई
साथ चलते दो किनारे
पेड़ों की घनी कतारें
डालियों पर गूंजता
पंछियों का कलरव
सतरंगी किरणों को
पंखों में समेटे
फूल-फूल पर
मंडराती तितलियाँ
भंवरों का गुंजन
प्यारा-सा गाँव
गुलमोहर की छाँव
रहट-रहट सी सांस
तिनका-तिनका आस
बैलों की रुनझुन
छप्पर-खलिहान
फूली सरसों
गमकते टेसू
बहती पुरवाई
उड़ती चूल्हे की राख
रंभाती गाय
मस्ती से उछलते बछड़े
बहती नदिया की
कल-कल धार
करती जीवन साकार
तो किसी पन्ने पर
पल्लू के कोने में बंधी
माँ की हिदायतें
कमरे से झाड़ी धूल
रसोई में पकते
खाने की खुशबू
चौकी-बेलन संग
खनकती चूड़ियों का
मिला-जुला राग
और भी न जाने
कितना कुछ है
अस्त-व्यस्त सा
समय कहाँ मेरे पास
सजाऊं-संवारूं इसे
मैं तो एक सैलानी हूँ
अतीत-वर्तमान को
रोज समेटती हूँ
इन पन्नो पर
समीक्षा के लिए
दे जाऊंगी समय को
उस दिन जब यह मेरी
जिल्द से लिपटी किताब होगी
तब यह सिर्फ मेरे नहीं
हर पढने वाले के हाथ होगी
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जीवन राग
उर की अनंत गहराइयों में
बिन खाद-पानी के जन्मे
बीज होते है स्वप्न
जब बीज है तो पनपेगा
फूलेगा-फलेगा
और आकार लेगा
विशाल वृक्ष का
जब वृक्ष होगा
तो घोंसले भी होंगे
जब घोंसले होंगे
चहकेंगें फुदकेंगे पंछी
होगा कलरव गान
स्वप्न तो स्वप्न होते हैं
परिश्रम और कर्म से सींच
लहलहाना होगा इन्हें
यदि यथार्थ में सुनना है
इन पंछियों का खुशियों भरा
लुभावना जीवन राग
– संध्या शर्मा