कविता-कानन
मौन
सूरज के होने तक
किरणें नाचती रहीं दिन भर
आकाश से गिरता जल
थिरकता रहा साँझ भर
रात की धुन पर
चाँद भी लहराया
और
इस नाचते, थिरकते, लहराते हुए
गुज़रते वक़्त का गवाह कौन?
दूर बिना हिले डुले
ठूँठ की तरहा खड़ा
अविचल मौन
जो अक्सर पसर जाता है
तुम्हारे और मेरे बीच
जब तुम नहीं सुनते
मेरी प्रार्थनाओं के स्वर
ईश्वर!
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ताले और सन्नाटे
ताले और सन्नाटे पर्यायवाची हैं,
दोनो पड़ जाते हैं
दरवाज़ों पर,
रिश्तों पर
संभालकर न रखो तो
चाबियाँ खो जाती हैं अक्सर
फिर
नहीं खुलते ताले
नहीं टूटते सन्नाटे
– प्रतीक्षा लड्ढ़ा