कविता-कानन
मोक्ष क्यों?
जिस पल
मेरी माँ ने अंतिम साँस ली
ठीक उसी पल
मेरी बेटी ने जन्म दिया
एक बेटी को
मेरी एक आँख में
माज़ी के आँसू
तो दूसरी में
भविष्य के
मोरपंखी सपने छलक रहे थे
अपने ही इन दृश्यों का
साक्षी बना था मैं
और मुझमें कुछ
प्रश्न सुलग रहे थे
अनन्तकाल के इस अन्तहीन चक्र में
माँ की यह कौनसी मृत्यु थी?
नवागंतुक नाती का
यह कौनसा जन्म है?
सोचता हूँ
जन्म चक्र से मुक्ति की
भला कोई क्यों पाले चाह?
क्यों वंचित रहें हम
माँ के दुलार से,
पत्नी के प्यार से,
बहन के अनुराग से,
पिता के आशीर्वाद से,
दिव्य-शैशव से मिलते
निर्मल आनन्द से
मोक्ष मिल गया तो
कौन बोएगा धान खेतों में?
कौन गाएगा गीत
कमली के गौने पर?
कौन अंधी बुआ को
सड़क पार कराएगा?
कौन बाबा को कंधा देने आएगा?
कौन निकालेगा रथ यात्रा और ताजिये
और कौन खाएगा रसगुल्ले
और भुजिये?
इस प्यारी धरती के वासी हम
अच्छा है
आते-जाते रहें यहाँ
प्रेम से मिलते बिछुड़ते रहें
और स्वर्ग बनाते रहें यहीं
इसी धरती पर
********************
बहुत कुछ घटता है तब
एक-सा ही विस्तार है
प्रेम के स्पंदन
नफ़रत की कंपन का
ठीक वैसे ही जैसे
झील में फेंके कंकर से पैदा लहर
उसके किनारों तक जाती ही है
और यदि किनारे नहीं होते
तो शायद लहर भी अनन्त ही होती
समस्त ब्रह्माण्ड को
अपने आगोश में लेकर
जादू की झप्पी देने को आतुर
ओ प्रेम!
कैसे घुल जाते हो यार तुम
हवा में ख़ुशबू
और पहाड़ों में
संगीत की तरह
और तुम ऩफ़रत!
सुनो!
किसी निर्दोष का गला काट देने से
सिर्फ उसकी
माँ की छाती ही नहीं फटती
संपूर्ण धरती तड़कने लगती है
बहुत कुछ घटता है तब
चाँदनी में उबाल
समंदर में सुनामी
सितारों में बैचेनी
सूरज में विस्फोट
और आकाशगंगाएँ
अपने मार्ग से
विचलित होने लगती हैं
सचमुच
बहुत कुछ घटता है तब
शायद इससे भी अधिक
कुछ और
कुछ और
– मुरलीधर वैष्णव