कविता-कानन
भाग्य भी होता है
उम्र सजीव की ही नहीं
निर्जीव की भी होती है
ये हम सब जानते हैं
समय पाकर सजीव/निर्जीव को
मृत्यु को प्राप्त होते
हम सबने देखा है
पर ये क्या!
किसी निर्जीव बुत का
भाग्य भी होता है
ये जाना,
जब देखा उसे
किसी दुकान के बाहर
सुंदर कपड़े पहने हुए
और ग़ज़ब तो जब हुआ
जिसे निहार रहा था
एक निर्वस्त्र भिखारी बालक
तो समझ आया
कि उम्र ही नहीं
भाग्य भी होता है
हर किसी का
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ये मित्र हैं
ये किताब नहीं
ये मित्र हैं
हम सब की
इन्हें सहेज कर रखिए
अपना हृदय समझ कर
इक्कीसवीं सदी है
इनके इस रूप के
साकार की
फिर ये नहीं मिलेगी
पुस्तकालयों में, बैठकों में,
बच्चों के बस्तों में,
दराजों में भी इन्हें
ढूँढते रह जाओगे
इन्हें पाने के लिए
गूगल पर सर्च करना होगा
बार-बार नेट खर्च करना होगा
जिस दिन भूल से
या जानबूझकर
बटन दब जायेगा
ये सम्पूर्ण-धन
हमारे हाथ से निकल जायेगा
ये विज्ञान और ये इंसान
देखता रह जायेगा
इसलिए
इन्हें सहेज के रखिए
ये किताब नहीं
ये मित्र हैं
हम सब की
– विश्वम्भर पाण्डेय व्यग्र