गीत-गंगा
बालगीत- नवयुग का निर्माण करो
सुख शांति हो विश्व में जिससे,
ऐसे कार्य महान करो।
उठो देश के नौनिहालों,
नवयुग का निर्माण करो।।
जाति, धर्म, वर्ण, संप्रदाय में
देश ये ख॔डित होवे ना।
रूढिता पाखंड के नाम पे
कोई दंडित होवे ना।
ज्ञान-विज्ञान की बातों से तुम,
भारत का उत्थान करो।
उठो देश के नौनिहालों,
नवयुग का निर्माण करो।
देखो गर कोई बोझिल चेहरा,
खुशी के उसमें भर दो रंग।
आँखों में हों टूटे सपने,
उम्मीदों के लगा दो पंख।
जिधर से गुज़रो छाए खुशियाँ,
जीवन का उन्वान करो।
उठो देश के नौनिहालों,
नवयुग का निर्माण करो।।
रूक के हाथ बढाओ उनको,
जो सदियों से हारे हैं।
गले लगाओ लोगों को जो,
भूख गरीबी के मारे हैं।
मानवता की सेवा करके,
मानव का सम्मान करो।
उठो देश के नौनिहालों,
नवयुग का निर्माण करो।।
उठे नज़र जो बुरी देश पे,
उन आँखों को नोच लो तुम।
देश की रक्षा आन की खातिर,
जान भी देंगे सोच लो तुम।
तुम हो वीर सपूत धरा के,
तन-मन-धन कुर्बान करो।
उठो देश के नौनिहालों,
नवयुग का निर्माण करो।।
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बालगीत- सूर्य बन प्रकाश कर
गहन अंधकार हो, राह दुश्वार हो,
पग-पग हो अड़चनें, मंजिल उस पार हो।
साहस रख मन में तू, मुश्किल स्वीकार कर,
तू गिरी के शिखरों पर, सूर्य बन प्रकाश कर।।
डर जिसको शूल का, फूल उसे कब मिला,
अग्नि में तपकर ही, स्वर्ण-सा वो खिला।
सत्यम शिवम सुन्दरम से, खुद को सँवार कर,
तू गिरी के शिखरों पर, सूर्य बन प्रकाश कर।।
छलका न व्यर्थ में तू, नयनों के मोती,
मन से जीत होती है, मन से हार होती।
स्वागत कर हर क्षण का, उस पे अधिकार कर,
तू गिरी के शिखरों पर, सूर्य बन प्रकाश कर।।
– डॉ. आरती कुमारी