कविताएँ
अलविदा ना कहना
कई बरस साथ जिए हैं हमने
हर साँझ यादें वापिस लौट आती हैं
रात की चादर पर
लिख देती है तुम्हारा नाम
चाँद पेड़ों के पीछे
लुका-छुपी खेलता है
कुछ पत्ते सूख कर झर गए थे
हवा के साथ उड़कर
चले जाते हैं दूर कहीं
यादों की तरह
भोर खिलने के साथ
जब आँगन में धूप खिलती है
उजाले में कुछ लिखता हूँ
भाव पिघलने लगते हैं
तुम बनती हो उनकी नायिका
मैं सुनाने लगता हूँ तुम्हें
एकाएक तुम्हारी आँखों की नमी
आकर बस जाती है
मेरे अंतस में
यादें बरसों पीछे छूट जाती हैं
काश हम कुछ मासूम पलों को
फिर-फिर जी पाते
समय की पुस्तक के पन्ने
तेजी से फड़फड़ाते हैं
और सारी यादें
हो जाती हैं गड्ड-मड्ड
तुम अनायास ही
हाथ थाम लेती हो मेरा
आँसुओं में भीगा तुम्हारा
चेहरा झुक जाता है
कांपती आवाज में कहती हो
सुनो,कभी अलविदा ना कहना!!
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रात
यह रात है
आँचल से जिसके
उजास लिए
झांकता है चाँद कभी
तारों की उदासी में
अँधेरा डूब जाता है कभी
टिमटिमाते हैं जुगनू
स्वप्नों की परछाईं के
रात उनकी है
जिनसे मज़ाक करते हैं
दिन जीवन के
अस्त हो जाते हैं
सूर्य अधूरी उमंगों के
और भूख हंसती है
इंसान की मजबूरी पर
रात! जहाँ ठिठक जाता है
धुंधलका साँझ का
इच्छाएं उजाले की
जागती हैं मायूसी में
सोती हैं मजबूरी में
निरपेक्ष हो रहती हैं
सुख से, दुःख से
जमने लगते हैं थके से चेहरे
रुक जाता है समय
कतरा भर धूप की प्रतीक्षा में
अनमनी रात
जेब जिसकी भर देता है
अजनबी कोई
बदनुमा धब्बों से
रिश्ते बन जाते हैं
पसीनों की बदबू में
खींच लेता है
चादर सहानुभूति की
आतुर से शब्द
बुनने लगते है मायाजाल
और सन्नाटे की आवाज
चीखती ही रह जाती है
युगों से ऐसी ही
चली आई है
रीत रात के रहस्यों की
नहीं मालूम किसी को
कहाँ ले जाती है नींद
स्वप्न खिलते हैं
किस दुनिया में
क्यों चाहती है रात
उससे न कोई बात करे
निःशब्द गिनती ही रहे
बीतते लम्हों को!!
– एस. एन. गुप्ता