कविता-कानन
प्रेम
प्रेम
रहेगा यह
जब तक श्वांस में हवा
आदमी में पानी है
दिखेगा यह
जब-जब किसनी देवी
अनाथ हरिण बच्चे को
अपना स्तनपान कराएगी
रामलाल बीमार अब्दुल को बचाने
अपना खून देगा
सुनेंगे हम प्रेम को
आधी रात में अलाव के पास
भीखू के गाए कबीर के भजनों में
या फिर घाटी में गूंज रही
चरवाहे की बांसुरी में
चखेंगे इसे
मीरा के विष प्याले के आचमन में
या सोहनी महिवाल के अश्कों में
बतियायेंगे इससे
जैसे माँ बतियाती है
अपने गर्भस्थ शिशु से
अनंत है विस्तार प्रेम का
अंतरिक्ष से परे
और परे
ब्रह्मांड से पहले भी था यह
प्रलय के बाद भी रहेगा
शाश्वत है यह दोस्त!
अजर-अमर आत्मा-सा
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धोरों की धड़कन
धोरों की तपन ने दिया है
अकूत धैर्य, अतुल्य शौर्य
ताम्र को वर्ण
जमीर को स्वर्ण
मर्यादा की पाग
और भीतर की आग
ये रेत के टीबे नहीं
युगों पुरानी दबी क्रोधाग्नि के
आणविक कण हैं
कभी रहे अथाह सागर की
विरहाग्नि से घटित अद्भुत क्षण हैं
इनकी छाती पर अटल सत्य-सी खड़ी
खेजड़ी के प्रस्फुटन ने दी है हमें
होठों पर मुस्कान
संघर्ष की आन
आज पूनम की रात
चाँदनी की डोली पर सवार
धीमे-धीमे उतर रही है
इन धोरों की लहरों पर मांड राग
एक बोरड़ी की छाँव तले
इमरती सींवण की ओट में
अभी-अभी उतरा है
एक गंधर्व प्रेमी युगल
गोडावण बन
बैठेे हैं यहीं कहीं
धोरों की ढलान पर
एक-दूजे का आईना बने
ढोला-मरवण मूमल-महेन्द्रु
धोरों पर मढे़ं दौड़ती गूंगी के
पैरों के येे निशान नहीं
शायद अभी-अभी राधा
कृष्ण के संग हो ली है
या उनके दिव्य प्रेम की
यह कोई रंगोली है
धोरे- टीबें, पाग- पगड़ी, खेजड़ी- वृक्ष, बोरड़ी- बेरी, सींवण- मरुस्थलीय घास
गोडावण- दुर्लभ पक्षी, मूमल-महेन्द्रु- प्रेमी युगल, गूंगी- मादा-कीट
– मुरलीधर वैष्णव