कविताएँ
कविता-1
अखबार पढ़ते हुए
एक बार लगा
आदमी !
आदमी से अलग है
रेडियो सुन कर
देश की संसद का
हाल मिला
सड़क पर ट्रकों का दौड़ना
आकाश में जहाजों की
आवाजाही
समुद्र में ज्वार
फिर भी, आदमी से
आदमी अलग ही है
इस दुनिया में आदमी का
अकेलापन
कोई दूर नहीं कर सकता
**********************
कविता- 2
सतह पर तैरती मछलियाँ
अचानक टिटहरी का
ग्रास हो जाती हैं
जिंदगी बहुत छोटी है
मछलियाँ पैदा होते ही
जान जाती हैं
********************
कविता- 3
हमारी भाग-दौड़
बढ़ती ही जा रही है
सभी लोग व्यस्त
सभी के कान में
एक मोबाईल चिपका है
हमारे पास आदमी से
बात करने की फुर्सत नहीं
जब हम बोलते हैं
सामने वाला डर जाता है
हम लगातार भयानक होते जा रहे हैं
इस तरह धरती
ऊसर होती है
धरती को ऊसर होने से बचाना है
***********************
कविता- 4
एक बीमार की तरह
जिंदगी को काटना
जिंदगी के साथ
खिलवाड़ है
कुछ नहीं कर सकते हो
तब भी, कम अज कम
एक पौध तो रोप ही सकते हो
दुःखी के साथ
कुछ देर हो सकते हो
किसी बच्चे को
चार पहिया के नीचे
आने से बचा सकते हो
चलो, कुछ मत करो
इस भीड़ में शामिल हो जाओ
जहाँ कोई अकेला हो जाये
उसी के साथ तुम हो लो
– वेद प्रकाश