कविता-कानन
पहाड़
ये पहाड़ मेरे आदर्श हैं
ये मुझे प्रेरणा देते हैं
नम्रता से कैसे महान लक्ष्यों तक पहुँचा जाता है,
कैसे शालीनता से
अपना शीश झुकाकर
ऊँचा उठा जाता है,
कैसे अनंत आकाश को छुआ जाता है।
ये पहाड़ मेरे आदर्श हैं
ये मुझे प्रेरणा देते हैं
हवाएँ कैसी भी हो
उनका रुख कैसे भी हो
नदियाँ चाहे कितनी भी उन्माद में बहे,
उन्हें कैसे अपने में समेट आ जाता है
कैसे मौन रहकर भी
सबकुछ कहा जाता है।
ये पहाड़ मेरे आदर्श हैं
ये मुझे प्रेरणा देते हैं
कैसे धैर्य से जमी बर्फ को पिघलाया जाता है,
पतझड़ के वीराने को
कैसे जिया जाता है,
कैसे बिना विचलित हुए साहस रखा जाता है
कैसे उड़ते थके परिंदों को भी
अपने शिखर पर आशियाना दिया जाता है।
ये पहाड़ मेरे आदर्श हैं
ये मुझे प्रेरणा देते हैं।
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जूता
कदर से पहनो, ढंग से रखो
जूता है इसे जूता मत समझो
इसे कुछ इस निगाह से देखो
जैसे वह तुम्हारा रहबर हो
जो तुम्हारी ढाल बनकर चल रहा है
साथ तुम्हारे,
तुम्हारे हर कदम पर,
तुम्हें आगे बढ़ाने के लिए
तुम्हारे पैरों को उत्साह के साथ आगे बढ़ाता है
अगर इसके स्वाभिमान को कुचलने की कोशिश करोगे तो
यह भी तुम्हारे पाँव को
अपने नुकीले दांत चुभाने के लिए
मजबूर हो जाएगा,
और फिर इसका दिया एक हल्का-सा ज़ख्म भी
कर सकता है तुम्हें
सदा के लिए जूते से मुक्त।
– डॉ. सुनील कुमार