कविता-कानन
पंक्ति
कुछ प्रेमिकाओं के हृदय में
गड़ाई जाती है कील
और
लटकाई जाती है
उससे एक पंक्ति
‘इस रिश्ते को यहीं दफ़न करो इसी में भलाई है’
जबकि
इस पंक्ति को
गहरा रंग देने वाला व्यक्ति
नहीं समझना चाहता
कि प्रेम समन्दर है
जहाँ ऐसी पंक्तियों के
गहरे रंग विलीन होते हैं,
समन्दर को रंगते नहीं।
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बस निवारण
देह के
कुछ रोगों के पास
संवेदनाएँ नहीं होती हैं
बस कुछ
तत्व होते हैं
जो सहलाते हैं
रोगों के सिरों को
तत्व चाहते हैं
रोगों का निवारण
वे नहीं झाँकना चाहते
कारणों को
शायद
अस्पताल को
जीवन का
अभिन्न हिस्सा बनाने के लिए
अंतत:
देह भर जाती है
निवारणों से
और सो जाती है
मृत्यु शय्या पर
एक सुखद मृत्यु प्राप्ति की
तीव्र इच्छा में।
– रमेश धोरावत