नवगीत
हृदय की तरंगों ने गीत गाया है
खुशियों का पैगाम लिये
मनमीत आया है
जीवन में बह रही
ठंडी हवा
सपनों को पंख मिले
महकी दुआ
मन में उमंगों का
शोर छाया है
भोर की सरगम ने, मधुर
नवगीत गाया है
भूल गये पल भर में
दुख की निशा
पलकों को मिल गयी
नयी दिशा
सुख का मोती नजर में
झिलमिलाया है
हाँ, रात से ममता भरा
नवनीत पाया है
तुफानों की कश्ती से
डरना नहीं
सागर की मौजों में
खोना नहीं
पूनों के चाँद ने
मुझे बुलाया है
रोम-रोम सुभितियों में
संगीत आया है
हृदय की तरंगो ने गीत गाया है
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नवगीत
चापलूसों का
सदन में बोल-बाला है
आदमी ने आदमी को चीर डाला है
आँख से अँधे
यहाँ पर कान के कच्चे
चीख कर यूँ बोलतें हैं
हों वही सच्चे
राजगद्दी प्रेम का चसका निराला है
रोज पकती है यहाँ
षड़यंत्र की खिचड़ी
गेंद पाले में गिरी या
दॉंव से पिछड़ी
वाद का परसा गया
खट्टा रसाला है
आस खूँटे बांधती है
देश की जनता
सत्य की आवाज को
कोई नहीं सुनता
देख अपना स्वार्थ
पगड़ी को उछाला है
आदमी ने आदमी को चीर डाला है
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रोजी रोटी की खातिर
रोजी रोटी की खातिर,फिर
चलने का दस्तूर निभाये
क्या छोड़े, क्या लेकर जाये
नयी दिशा में कदम बढ़ाये
चिलक-चिलक करता है मन
बंजारों का नहीं संगमन
दो पल शीतल छाँव मिली, तो
तेज धूप का हुआ आगमन
चिंता ज्वाला घेर रही है
किस कंबल से इसे बुझाये
हेलमेल की बहती धारा
बना न कोई सेतु पुराना
नये नये टीले पर पंछी
नित करते है आना-जाना
बंजारे कदमो से कह दो
बस्ती में अब दिल न लगाये
क्या खोया है, क्या पाया है
समीकरण में उलझे रहते
जीवन बीजगणित का परचा
नित दिन प्रश्न बदलते रहते
अवरोधों के सारे कोष्टक
नियत समय पर खुलते जाये
– शशि पुरवार