गीत-गंगा
नवगीत
(1)
उनसे प्यार
करूँ
मन का हिरन
कुलांचें भरता
कैसी- कैसी
बातें करता
चाहत रखता
हर पल मुझसे
आँखें चार करूँ
उनसे प्यार
करूँ
मन का मोर
मगन हो झूमे
मेंहदी रची
हथेली चूमे
चाह रहा है
यह व्याकुल मन
मैं अभिसार करूँ
उनसे प्यार
करूँ
मन का खरहा
यूँ शर्माये
राग सुनाए
गाने गाए
कहता सपने
सारे मन के
एकाकार करूँ
उनसे प्यार
करूँ
मन की तितली
उड़-उड़ जाए
दिल से दिल तक
जुड़-जुड़ जाए
बोल रही है
आकर मुझसे
मैं मनुहार करूँ
उनसे प्यार
करूँ
मन का पाँखी
पंख पसारे
ढूंढे अब तक
लाख सहारे
मीत मिला ना
उन-सा कोई यह
स्वीकार करूँ
उनसे प्यार
करूँ
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(2)
फिर मत कहना
धूल हो
तुम फूल हो
प्रेम सुधा रस
भारी गागरी
लगती ज्यों हो
नदी बावरी
ठाँव जहां मन
लेना चाहें
एकमात्र
तुम कूल हो
तुम फूल हो
प्रेम प्रवाहित
रहे सर्वदा
तुम्ही मेरे
लिए नर्मदा
बार बार मन
करना चाहे
तुम वह
मीठी भूल हो
तुम फूल हो
तुममें देखा
वेग नदी का
भोग लिया सुख
एक सदी का
मैं इतराऊं
तुमसे जुड़कर
एकमात्र
तुम मूल हो
तुम फूल हो
– मनोज जैन मधुर