गीत-गंगा
नवगीत- पैगाम तेरा
बंद आँखों से,
पढ़ लिया
पैगाम तेरा।
उड़ती हुई
खुशबू का झोंका,
तन मन
सुवासित कर गया।
फुलवारी की
महक फीकी,
गंध ऐसी
चाहतों में भर गया।
हरकारे ने भेंट दी,
रटती रही बस नाम तेरा।
मिल न पाये
क्या हुआ जो,
अंखियों के
रंग गहराते गये।
स्वप्न सजे
तेरे मेरे,
रंग भरे
हर पल भरमाते गये।
प्यार ने दस्तक दी,
ख़ुशियाँ दे मेरे धाम फेरा।
मिलन की रात
आएगी महकती,
देह बंकिम
इन्द्रधनुष तन जायेगा।
वक्त ठहरेगा
न माने वह,
मौन रह
साक्षी बन जायेगा।
हम तुम मिलेंगे जब,
दिन थके से
डाले साँझ डेरा।।
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नवगीत- छोड़ दो मुझको अकेला
कनक देह पर,
लेपित संदल।
रोम रोम है,
लहरें चंचल।
अंग अंग श्रृंगार सजेगा।
अब रूप सजेगा, नया नवेला।।
है सलज्ज-सी,
देह अनावृत।
आँचल भी है,
करे शरारत।
कारे नयन, चढ़ेगा कजरा।
ज़ुल्फ़ों का भी, ख़म अलबेला।।
भुजदंड सज गये,
झूले झुमके।
अब पायल भी,
मारे ठुमके।
गलहार गले में झूलेगा।
अधर गुलाबी, हँसी का रेला।।
– भगवती प्रसाद व्यास नीरद