गीत-गंगा
नयन जो बन गए हो तुम
झनकती जा रही पायल,
चमकती जा रही बिंदिया,
महकता जा रहा गजरा,
सुमन जो बन गए हो तुम!
गरजता जा रहा अम्बर,
दमकती जा रही बिजली,
उमड़ते आ रहे बादल,
चमन जो बन गए हो तुम!
सिमटती जा रही धड़कन,
उखड़ती जा रही साँसे,
लिपटता जा रहा आँचल,
पवन जो बन गए हो तुम!
छलकती जा रही आँखे,
लरजते जा रहे आँसू,
बिखरता जा रहा काजल,
नयन जो बन गए हो तुम!
*************************************
मैं तेरा चिरकाल
ख़ुद से पूछा आज अचानक मैंने एक सवाल,
दिल पर रखकर हाथ बता तू, क्या है तेरा हाल?
गूँज उठी वाणी भीतर से, काँप रहा मन द्वार,
कभी न देखा मुड़कर तूने मुझे एक भी बार!
पता न था मंज़िल का फिर भी, कभी न मानी हार,
कितनी दूरी तय की तूने, जीवन के दिन चार?
याद तुझे अब आई मेरी, बीते कितने साल?
ख़ुशी मुझे है देर सही, पर बदली तेरी चाल!
रहा ढूंढता बाहर अब तक अमन-चैन औ’ प्यार,
धरा ढँका है भीतर तेरे, झाँक अरे, इस बार!
भाग रहा तू जिसके पीछे मिथ्या है उपचार,
गंगा तेरे भीतर बहती, भवसागर कर पार!
भटक गया है राह, तभी तो मिला न पाया ताल,
भूल गया है तू मुझको, पर मैं तेरा चिरकाल !
तरस रहा था जाने कब से, करने तुझे दुलार,
जो भी सपने यहाँ संजोये, करने थे साकार!
गले लगा ले आज मुझे तू, प्यास बुझा दे यार,
सावन बनकर आज बरस जा, खिल जाये कचनार!
अपने को पहचाना मैंने, बस हो गया कमाल!
गले लगाकर ख़ुदको, मेरा अंतर हुआ निहाल!
*****************************
ईश्वर
मुझे प्यार है सब पथिकों से, मैं कदमों से क़दम मिलाता;
तुम भूले को और भुलाते, मैं मंज़िल की राह दिखाता।
हुआ यहाँ पर कौन किसी का, किसने किस से तोड़ा नाता;
तुम उछालते हो बातों को, मैं होठों पर मौन सजाता।
तुमको प्यारे आँधी-तूफाँ, तुम को प्यारा पतझड़ सूना;
तुम उजाड़ते हो बागों को, मैं सहरा में फूल खिलाता।
तुम धर्मों की बाड़ बनाते, गली-गली में आग लगाते;
तुम तलाशते हो आहों को, मैं घावों के दर्द मिटाता।
मानव, तुम्हें बनाकर सोचा स्वर्ग बसेगा अब धरती पर;
सारी सृष्टि रची है मैंने, लेकिन अब पल-पल पछताता।
– मल्लिका मुखर्जी