गीत-गंगा
त्राहिमाम है चारों ओर
दहशत बैठी दिल के अन्दर,
त्राहिमाम है चारों ओर।
कोरोना का कलुषित साया,
छाया बादल बनकर।
बच्चे, बूढ़े और युवा सब,
दुबके घर के अंदर।
सामाजिक दूरी से केवल,
बचती अब साँसों की डोर।
दहशत बैठी दिल के अन्दर,
त्राहिमाम है चारों ओर।।
सहमी-सहमी धरती लगती,
अम्बर लगता चिंतित।
दूर-दूर अब चाँद-चाँदनी,
सभी ख़ुशी से वंचित।
पथराई हैं आँखें सबकी,
अंतर्मन में लेकिन शोर।
दहशत बैठी दिल के अन्दर,
त्राहिमाम है चारों ओर।।
बैठ अकेली सोच-रही हूँ,
कैसी विपदा आई।
क़ैद घरों में जीवन उस पर,
डसती नित तनहाई।
घर में रहकर खिड़की से ही,
देख रही हूँ कुंठित भोर!
दहशत बैठी दिल के अन्दर,
त्राहिमाम है चारों ओर।।
आने वाले कल की ख़ातिर,
घर में ही रहती हूँ।
रहे सुरक्षित भारत अपना,
यही दुआ करती हूँ।
गले मिलें हम फिर अपनों से,
सुरभित हो अन्तस की छोर।
दहशत बैठी दिल के अन्दर,
त्राहिमाम है चारों ओर।।
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यह कुदरत का बदला है
मृत्यु-लोक यमराज पधारे,
विश्व समूचा दहला है।
घूम-रहे यम सड़कों पर नित,
मानव घर से मत निकलो।
कठिन समय यह टल जाएगा,
बस कुछ दिन धीरज धर लो।
हल्के में इसको मत लेना,
जीवन का यह मसला है।
मृत्यु-लोक यमराज पधारे,
विश्व समूचा दहला है।।
हाहाकार मचा दुनिया में,
अर्थ व्यवस्था मूर्छित है।
मानव का दुश्मन मानव अब,
जीवन नही सुरक्षित है।।
नही पता है यहाँ किसी को,
किसका नम्बर अगला है।
मृत्यु-लोक यमराज पधारे,
विश्व समूचा दहला है।।
नदी समंदर पर्वत भू-नभ,
सबके सम्मुख संकट है।
देख चुनौती जीवन की अब,
व्याकुल विचलित-सा वट है।
जाने क्यों मुझको लगता है,
यह कुदरत का बदला है।
मृत्यु-लोक यमराज पधारे,
विश्व समूचा दहला है।।
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दूर हुआ भौतिकता से मनु
दूर हुआ भौतिकता से मनु,
चहक उठा घर आँगन है।
भले ख़ौफ़ है कोरोना का,
पर जीवन अब सात्विक है।
योग-साधना पूजन कर नित,
अंतर्मन आध्यात्मिक है।
तन रामायण-सा अनुशासित,
मन मंदिर-सा पावन है।
दूर हुआ भौतिकता से मनु,
चहक उठा घर आँगन है।।
पर्यावरण अलौकिक सुन्दर,
खिलकर महका पतझड़ है।
सूक्ष्म-हुईं इच्छाएँ विस्तृत,
लगता यह स्वर्णिम क्षण है।
रिश्तों के मरु खेतों में यह,
रिमझिम-रिमझिम सावन है।
दूर हुआ भौतिकता से मनु,
चहक उठा घर आँगन है।।
शाकाहारी भोजन खाकर,
संस्कृति को पहचान गयी।
धर्म सनातन अविनाशी है,
सारी दुनिया मान गयी।
पुनः जन्म मानवता का यह,
कितना शुचि मन भावन है।
दूर हुआ भौतिकता से मनु,
चहक उठा घर आँगन है।।
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आध्यात्मिक चिन्तन
कुछ दिन रह एकांतवास में,
सात्विक कर लो मन।
ईश्वर सम्मुख ले जाएगा,
आध्यात्मिक चिन्तन।।
गीली मिट्टी के पुतले हो,
मानव तुम कच्चे।
खुद से मिलकर जानो खुद को,
कितने हो सच्चे।
क्या अन्तस में संचित है कुछ,
सच्चाई का धन।
ईश्वर सम्मुख ले जाएगा,
आध्यात्मिक चिन्तन।।
आत्मा यदि भीतर जीवित है,
निशि-दिन बोलो सच।
तन दूषित मन कुंठित करता,
थोड़ा-सा लालच।
प्रगति-मार्ग के कंकड़ होते,
मायावी बंधन।
ईश्वर सम्मुख ले जाएगा,
आध्यात्मिक चिन्तन।।
साक्षात्कार करो धड़कन से,
मन को गति देकर।
आज स्वयं से पूछो तुम क्या?
आये हो लेकर।
अन्तर्मन की निज हांडी में,
खूब करो मंथन।
ईश्वर सम्मुख ले जाएगा,
आध्यात्मिक चिन्तन।।
– रेनू द्विवेदी