गीत-गंगा
तुमको हूँ मैं ख़ुद में पाता
पथ में कोई विघ्न जो आता।
तुमको हूँ मैं ख़ुद में पाता।।
तुम मुझमें साकार हुए हो,
जीवन का आकार हुए हो।
मेरे संवेदनशील हृदय में,
अपना ही विस्तार हुए हो।
जब भी ये मन ढूँढने जाता।
तुमको हूँ मैं ख़ुद में पाता।।
तुम हो मेरी आत्म-अभिलाषा,
शब्द-शब्द हो और हो भाषा।
मेरे भावों का अनुवाद तुम,
मेरे नयनों की हो आशा।
बरखा में जब झूमके गाता।
तुमको हूँ मैं ख़ुद में पाता।।
सुगंध तुम्हारी वासित मुझमें,
अंश तुम्हारा सिंचित मुझमें।
घने वृक्ष की नयी पौध हूँ,
नाम तुम्हारा वंशित मुझमें।
अक्सर मेरे जीवन दाता।
तुमको हूँ मैं ख़ुद में पाता।।
मेरा हर आदर्श तुम ही हो,
आत्म का परामर्श तुम ही हो।
मन के कोमलतम भावों का,
स्पंदित स्पर्श तुम ही हो।
कभी दुखों को जो सहलाता।
तुमको हूँ मैं ख़ुद में पाता।।
(27 मार्च को पिताजी की 13 वीं पुण्यतिथि पर उनके चरणों में अर्पित)
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कौन करेगा इतना
कौन करेगा इतना जितना
तुम करते हो भाई
घर को पापा छोड़ गये तो
तुमने दिया सहारा
ख़ून-पसीना अपना करके
फिर से उसे संवारा
अपने दम पर ज़िम्मेदारी
तुमने ख़ूब उठाई
कौन करेगा इतना जितना
तुम करते हो भाई
बड़े हुए तो सबने अपने
अपने पर फैलाए
अपने अपने कुनबे जोड़े
अपने ख़्वाब सजाए
मगर तुम्हारी नज़रों में बस
घर की लाज समाई
कौन करेगा इतना जितना
तुम करते हो भाई
सबने तुमको सुख में, दुःख में
साथ खड़े है पाया
सबकी ख़ातिर तुमने ख़ुद को
सारी उम्र खपाया
मगर तुम्हें जब पड़ी ज़रूरत
हमने नज़र घुमाई
कौन करेगा इतना जितना
तुम करते हो भाई
आसपास में लोग ख़ुदा से
माँगे यही मुराद
मिले अगर तो मिले सभी को
तुम जैसी औलाद
तुमने अपने ख़ानदान की,
घर की शान बढ़ाई
कौन करेगा इतना जितना
तुम करते हो भाई
– के. पी. अनमोल