गीत-गंगा
गौण हो गए अर्थ प्रेम के
गौण हो गए अर्थ प्रेम के
मूर्छित हैं सम्बन्ध
अब रिश्तों की ट्रेड मील पर
दौड़ रहे अनुबंध
बोनसाई संबंधों से
व्यर्थ छाँह की चाह
सिर्फ लिफाफा करता
सारे रिश्तों का निर्वाह
दादा-दादी, नाना-नानी
सिर्फ कहावत, एक कहानी
बच्चे ढूँढ रहे टी. वी. में
अब जीवन के छंद
पैसा! पैसा! हाये पैसा!
यही जगत का सार
घर से ऑफिस, ऑफिस से घर
इतना भर संसार
चाह सभी की बंगला-गाड़ी,
तन भर सोना, महँगी साड़ी
महके डीयो, लेकिन मन का
ग़ायब है मकरंद
छुट्टी-मूवी, पिकनिक-पिज़्ज़ा
तड़क-भड़क त्यौहार
ट्विटर-फेसबुक और व्हाट्सअप
अब जीवन-व्यवहार
फुरसत की चौपालों वाली,
बातें सौ-सौ सालों वाली
करने भर का समय किसे है
सारे नाटक बंद
गौण हो गए अर्थ प्रेम के
मूर्छित हैं सम्बन्ध
अब रिश्तों की ट्रेड मील पर
दौड़ रहे अनुबंध
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सफलता का नया साधन
रीढ़ में हड्डी नहीं, है
लिजलिजा-सा द्रव्य कोई
लोग इसको ही सफलता
का नया साधन बताते
बस जुगाड़ी याचनाएँ
आज परिचर्चा बनी हैं
और सब संवेदनाएँ
स्वार्थ के रंग में सनी हैं
जोकरों का वेष धरकर
शारदा सुत घूमते हैं
लाभ की आशा लिए
ऐश्वर्य के पग चूमते हैं
नफरतों को पूजते हैं
प्रेम की सौगंध खाते
प्रेम में अश्लीलता है
ओज बोझिल है, थकित है
और करुणा देखकर
इनकी कुटिलताएँ चकित हैं
दो किताबें भी न देखीं
पोथियाँ गढ़ने लगे हैं
और अपनी ही नज़र में
ये गगन चढ़ने लगे हैं
काश अपने मस्तकों पर
धैर्य का चंदन लगाते
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समय के शिलापृष्ठ पर
अगर समय के शिलापृष्ठ पर
समय-समय पर लिखा नहीं तो
आने वाला युग केवल कुछ
मक्कारों को पूजेगा
दनुज देव बन अर्चित होंगे
देव क्रूर समझे जाएँगे
अक्षर-अक्षर चुनने वाले
चरबा-हे समझे जाएँगे
अगर समय के शिलापृष्ठ पर
कालजयी कुछ लिखा नहीं तो
आने वाला युग केवल कुछ
नक्कारों को पूजेगा
झूठे वादे करने वाले
राष्ट्र नियन्ता बन जाएँगे
और भगीरथ के अनुयायी
शुचिताओं पर पछतायेंगे
अगर समय के शिलापृष्ठ पर
बदलावों को लिखा नहीं तो
आने वाला युग केवल कुछ
ग़द्दारों को पूजेगा
जग की भूख मिटाने वाले
भूखे-प्यासे मर जाएँगे
और युवा कुछ धनपशुओं
के बंधुवा बनकर रह जाएँगे
अगर समय के शिलापृष्ठ पर
जागरणों को लिखा नहीं तो
आने वाला युग केवल कुछ
प्रतिकारों को पूजेगा
सत्य-अहिंसा के आराधक
हिंसा में मारे जाएँगे
जाति-धर्म के द्यूत रचेंगे
राष्ट्रधर्म हारे जाएँगे
अगर समय के शिलापृष्ठ पर
जागरणों को लिखा नहीं तो
आने वाला युग केवल कुछ
हत्यारों को पूजेगा
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तब कुछ गीत लिखे जा पाए
जाने कितनी रातें जागे
स्वप्न हजारों रहे अभागे
कितने बरस गए मुँह बाए
तब कुछ गीत लिखे जा पाए
कितनी ही पीड़ाएँ झेलीं
कुछ अपनी कुछ दूजों से लीं
मन पर कितने घाव सजाए
तब कुछ गीत लिखे जा पाए
जीवन को बैराग थमाया
ख़ुद से ख़ुद को ख़ूब लुटाया
मन को जब तप सिद्ध कराए
तब कुछ गीत लिखे जा पाए
शब्द-शब्द को जब शिव माना
भावों का मदिरामृत छाना
चिंतन को जब शिखर नपाए
तब कुछ गीत लिखे जा पाए
– चंद्रेश शेखर