गीत-गंगा
गीत-
पाँव में अपने चपलता तुम भरो तो
द्वार देहरी बैठ राहें तक रही है
प्रिय, तुम्हारी आस में वह थक रही है
मात आशा अनुकरण तुम भी करो तो
पाँव में अपने चपलता तुम भरो तो
बीतता है दिन क्षणों की आहटों में
साँझ जाती नभचरी चहचाहटों में
दीप से उजली विकट रजनी करो तो
पाँव में अपने चपलता तुम भरो तो
लक्ष्य दिखता दूर है वो पास होगा
शीत मौसम में सुखद मधुमास होगा
राह दुर्गम पर चलो; निश्चय करो तो
पाँव में अपने चपलता तुम भरो तो
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गीत-
नेह के पथ पर अकेले क्यों खड़े हो
कर समर्पित नेह पर सर्वस्व अपना
पूर्ण कर लें हम प्रिये प्रत्येक सपना
मिल बढ़ें कठिनाइयों के द्वार भीतर
तुम अकेले इस जगत से क्यों लड़े हो
नेह के पथ पर अकेले क्यों खड़े हो
क्यों न मिलकर एक होना चाहते हो
लग रहा मुझको न खोना चाहते हो
प्रेम का अनुबंध करके देख भी लो
तुम निरर्थक ही हठों पर क्यों अड़े हो
नेह के पथ पर अकेले क्यों खड़े हो
रच रहे हो प्रश्न हिय के नेह जल से
प्रश्न का उत्तर मिलेगा किन्तु हल से
डग बढ़ाकर बढ़ चलो इसकी डगर पर
पाँव को पथ पर प्रिये तुम क्यों जड़े हो
नेह के पथ पर अकेले क्यों खड़े हो
– शिवम खेरवार