गीत-गंगा
गीत- पढ़ने की इच्छा
मुनिया की पढ़ने की इच्छा
देती थी विश्वास
मिट्टी पर वह अक्षर लिखकर
करती थी अभ्यास
चौका बर्तन घर-घर करती
भर आँखों में पीर
कभी कटेगी इस जीवन से
दुख की ये ज़ंजीर
रद्दी से कुछ कागज चुनकर
लाती मुनिया खास
कॉपी, कलम, दवात नहीं है
और न शिक्षक साथ
कौन सिखाये पढ़ना उसको
पकड़-पकड़ कर हाथ
शाला के बाहर बैठी वह
पढ़े गणित इतिहास
इस कक्षा से उस कक्षा तक
जाती बारम्बार
सहती रहती अध्यापक की
हर झूठी फटकार
जैसे-तैसे लेकिन पढ़ती
मन में रखकर आस
जैसे कोई तारा टूटे
वर लेते हम माँग
वैसे पलकों के मोती को
वह देती थी टाँग
आगे बढ़ने की इच्छा में
लेती लम्बी श्वास
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गीत- आओ हम तकदीर लिखें
नन्हें-नन्हें इन हाथों की, आओ हम तकदीर लिखें।
ऊँची शिक्षा इन्हें दिलाकर, एक नई तस्वीर लिखें।।
भूख, गरीबी, लाचारी में, इनको खोने मत देना।
भूले से भी इन फूलों को, देखो रोने मत देना।
चुनकर पलकों से सब आँसू, दुखियारों की पीर लिखें।
ऊँची शिक्षा इन्हें दिलाकर, एक नई तस्वीर लिखें।।
बच्चों के ही कारण घर में, गूँज रही किलकारी है।
दीपक ये अपने आँगन के, इनसे घर फुलवारी है।
सारे जग की खुशियाँ जोड़े, ऐसी हम ज़ंजीर लिखें।
ऊँची शिक्षा इन्हें दिलाकर, एक नई तस्वीर लिखें।।
शिशु साधक प्रतिपालक कल के, भारत के गणनायक हैं।
उम्मीदों की सुंदर किरणें, कल के ये अधिनायक हैं।
फैले खुशबू सारे जग में, ऐसी मस्त समीर लिखें।
ऊँची शिक्षा इन्हें दिलाकर, एक नई तस्वीर लिखें।।
पग-पग पुष्प बिछायें सुन्दर, कर्तव्यों का ध्यान रखें।
सद्कर्मों का पाठ पढ़ाकर, शिक्षा का हम मान रखें।
धरती और गगन पर छायें, हर बालक को वीर लिखें।
ऊँची शिक्षा इन्हें दिलाकर, एक नई तस्वीर लिखें।।
– पुष्प लता शर्मा