कविता-कानन
कविता- पतंग की सैर
बाँध गले में लंबी डोर
मैं चली आकाश की ओर
फर-फर फर-फर ऊपर जाती
सर-सर सर-सर नीचे आती
कभी ठुमक-ठुमक इतराती
कभी सहेलियों से लड़ जाती
कभी किसी को काट गिराती
कभी कट खुद नीचे आ जाती।
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कविता- रिमझिम बरसात में
बादलों के गोले
उड़ चले आकाश में,
टप-टपकर बूँदें गिरीं
रिमझिम बरसात में।
झरने दौड़े सारे मिलकर
बहने को साथ में।
नहा गए पेड़-पर्वत
रिमझिम बरसात में।
घर से दौड़े बच्चे सारे,
नाव लिए हाथ में।
खुद भी दौड़े नहाने को
रिमझिम बरसात में।
छम-छम उतरने लगीं,
पकौड़ियाँ कढ़ाई में।
गप-गप कर खाने लगे हम,
रिमझिम बरसात में।।
– अनुपमा तिवारी