कविता-कानन
कार्य करने की कला
हर व्यक्ति कुछ करना चाहता है,
कर नहीं पाता
क्योंकि उसे करना ही नहीं आता।
बनना चाहता है हिमालय,
किन्तु तूफानी हवाएं उड़ा ले जाती हैं
रेत के एक-एक कण को,
महल बनने से पहले ही ढह जाता है,
आदमी ठगा-ठगा रह जाता है।
संस्कार की हर श्रृंखला
उसे बार-बार रोकती है,
झंझावातों के मेले में,
आदमी अकेले में कहाँ रह पाता है?
निषेधों के प्रहार
सहते-सहते बार-बार
जीवन ठूँठ ही रह जाता है
जो भी व्यक्ति उस गीत को,
अनूठी प्रतीति को,
जानता है, पहचानता है,
वह भी तो नहीं बता पाता है।
सुनना समझने की पहली शर्त है
किन्तु गौतम के उपदेश को,
गाँधी के संदेश को,
व्यक्ति कहाँ सुन पाता है?
सुनता है वही
जो उसे जँचता है, भाता है
सुनता है वही
जो उसे सुनना आता है।
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आँखें
हम किसी को देखते हैं
तो सिर्फ उसकी आँखों की वजह से।
किसी का चेहरा उसी की आँखें हैं
और उसके चेहरे पर उसी के आँखों की ही खूबसूरती है।
आँखों के सिवा चेहरे में कुछ भी नहीं रखा है।
आँखें आपके दिल की जुबान हैं,
जो दिल के गहरे राज को खोलती हैं।
कभी-कभी आप नहीं बोलते,
आपकी आँखें बोलती हैं।
आपके चेहरे पर जो निखार है
वो कुछ और नहीं,
आपकी आँखों का ही चमत्कार है।
– आचार्य बलवन्त