कविताएं
इत्र तेरा
कलम मेरी
हर्फ मेरा
स्याही मेरी
हर पन्ना मेरा…..
लेकिन हर
लिखावट में
क्यूँ
जिक्र है तेरा….
लिख
रहा हूँ आजकल कुछ
इश्क के बारे में….
हर पन्ने पर
फैला क्यूँ
इत्र है तेरा…..?
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रेत की तरह
रेत की तरह
छूट गए हैं
कुछ रिश्ते,
अब मेरे
हाथों से……
आहों को
ओढ़ कर
मैं अब,
जीवन मांग रहा हूँ
अपनी सांसों से….
अकेले मत
जाना छोड़ कर
तुम भी,
मैं हार चुका हूं
झूठे झांसों से…..
रेत की तरह, छूट गए हैं कुछ रिश्ते
अब मेरे हाथों से…..
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यादें
तेरी यादों के पहाड़ पर
बैठ कर
मैं शब्दों के बादल
छू लेता हूँ…..
कुछ बूंद बनकर
दिल की जमीं पर
गिर जाते,
कुछ को पन्नों में
लपेट लेता हूँ…
तुम जा चुकी थीं
मैं रोक भी न सका,
सीली आँखों में अब
आंसुओं को
समेट लेता हूँ….
– अजय सिंह राणा