कविताएँ
कलर ब्लाइंड
समय की कूंची
वर्तमान के केनवास पर
खींच रही
न जाने कितने
चाहे-अनचाहे चित्र
जो धीरे-धीरे
अतीत के अल्बम में
बन गए हैं इतिहास
इन्हें लोग देखकर भी
अनदेखा कर जाते हैं
कुछ लोग
इनके रंगों को
जान-बूझकर
पहचानने से कर जाते हैं
इन्कार
कुछ होते हैं ‘कलर ब्लाइंड’
जो रंग पहचान ही नहीं पाते हैं
लाल रंग उन्हें
सफ़ेद नज़र आता है
सफ़ेद उन्हें काला
और काला उन्हें
अपना-सा लगता है
प्रश्न यह उठता है कि
क्या हम पहचाने
इन रंगों को?
समझें इन चित्रों के अर्थ?
अथवा
पहचानने से कर दें इन्कार?
या फिर बन जाएँ
‘कलर-ब्लाइंड’ ही
क्योंकि
जो इन रंगों को
पहचान लेता है
और जान लेता है
इन चित्रों के अर्थ
वह फिर जी नहीं पाता है
सचमुच
फिर वह जी नहीं पाता है
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पतंग या पंछी
मुझे पतंग न बनाओ अपनी
जिसे जब जी चाहे
तब उड़ाओ आकाश में
खूब छूट दो उड़ने की
पर डोर से बाँधे रखो अपनी
जब चाहो तनी रखो, जब चाहे ढील डाल दो
और नचाते रहो अपनी उंगलियों से
फिर अपना वर्चस्व जताने की होड़ में
काट दो अन्य की पतंग को
या कटवा दो मुझे और
मैं रह जाऊँ लटकी अधर में त्रिश्ंकु-सी
मत बनाओ मुझे अपनी पतंग
रहने दो मुझे
एक स्वतंत्र पंछी के मानिन्द
मैं वैसे ही
तुम्हारे प्यार की डोर से बंधी
तुम्हारी हथेलियों पर
चुग्गा चुगने चली आऊँगी
बिन लपेटे ही लिपटी रहूंगी
तुम्हारे प्यार की चरखी से
नाचती रहूँगी, फुदकती रहूंगी
तुम्हारी सशक्त बाजूओं पर
दूँगी एक ठहराव/अपना अंक
जहाँ रख कर अपना सिर
ले सकोगे सुकून की नींद
मत बनाओ मुझे पतंग
रहने दो मुझे एक पंछी के मानिन्द
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हल्दिया हाथ
हल्दिया हाथों ने
फैला दीं हथेलियाँ
और लिख दिया
किरणों ने नाम चुपके से
प्रियतम का
शर्मसार हुईं पंखुरियाँ
सिहर-सिहर गईं
लहक गईं डालियाँ
महक-सी छा गई वादियों में
पवन ने दिया संदेशा
ली है अंगडाई सजन ने
चम्पई मन हो उठा गदगद
सुंदर सपने-सा रोमांचक
शुचिपूर्ण चम्पा
गदरा उठी वादियों में
कलियों ने खोल दिए पट
सद्यस्नाता-सी
ओस की बूँदें बदन पर लिए
कैसी ओजस्विनी लग रही है!
मेरे आँगन में खिली चम्पा
– मंजु महिमा