कविता-कानन
1.
आओ फिर करें रस्म अदायगी
मनाएँ जश्न
झाड़ें धूल नपे-तुले शब्दों
और अभिवादन संदेशों की
पुराने लिफाफों पर नए पते लिख भेजें
खुश हो लें
काश बदले कुछ और भी तारीख़ों के साथ
ग़रीबों की भूख,
रोज़गार तलाशते पैरों की मंज़िल,
बेटियों की सुरक्षा में घुलती माँओं की चिंताएँ,
बीते तमाम छालों की टीस,
कानून के आँखों पर बंधी काली पट्टी
और भी बहुत कुछ
तारीख़ों के बदलने का जश्न मनाते हम
आदतन बदलते हैं कैलेंडर
और चल पड़ते हैं नए साल की ओर
नहीं बदलता फिर भी कुछ भी
भूल जाते हैं बदलना हर बार
बहुत ही अहम चीज़
न झाँक पाते हैं खुद में
न मिला पाते हैं नज़रें ख़ुद के ज़मीर से
नहीं बदल पाते तो दिन बदलने की उम्मीद लगाए ख़ुद को…..!!
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2.
ख़ुशबू बिखरी थी
नम हवाएँ भी थीं
कुछ महकी महकी
बहके लम्हों सी
बरसती टप-टप बूंदें
कच्ची मिट्टी हो
या कि दिल की ज़मीं
मन्नत के धागों से
रंग लेकर रच गया
हीना-सा हर-सू
इश्क़ ही होगा
सुनता कब है
ज़िद्दी है बेहद
पल्लू में बंधी चाबियों-सा
काश आसान होता
बांधना मन को….!!
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3.
तुम
एक अबूझ सी पहेली
कभी लगता है जाना है तुम्हें
बहुत बहुत करीब से
तो दूसरे ही पल
बहुत दूर से महसूस हुए
एक अनसुलझा-सा रहस्य
किन्ही पलों में
बहुत अपने से लगे
तो दूसरे ही पल
एक जटिल सत्य से
काश!
परत दर परत
ग्रंथियां खोल पाती
काश!
मैं तुम्हें जान पाती
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4.
जीवन के इस कोलाहल से
कुछ मधुरिम सप्तक मैं चुन लूँ
उलझे-सुलझे इन तारों से
थोड़े मीठे सपने बुन लूँ
इक बीता-सा वक़्त सुनहरा
अक्सर ख़ुशबू ले आता है
पल दो पल वहीं ठहर कर
कुछ प्यारे पल फिर से चुन लूँ
कुछ पंछी गुज़रे थे इधर से
गाते मंद स्वरों में मधुरिम गान
कर्कश सारी ध्वनि बिसराकर
मोहक प्यारी धुन मैं सुन लूँ
कठिन भले हो पथ जीवन का
कर्कश कितनी हो इसकी तान
मीठे सारे पल सहेज कर
इसकी मोहक रुनझुन गुन लूँ
उलझे-सुलझे इन तारों से
थोड़े मीठे सपने बुन लूँ
– प्रियंका पांडे