कविता-कानन
अल्पत्मांक
किसी भी बिंदु के
निकटतम बिंदु तक
पहुँचने में एक अल्पतमांक
बिंदु हमेशा शेष रहता है
इस बिंदु को न ही हमारी
कल्पनाओं और न ही यंत्रों से
लांघा जा सकता है
केवल आत्मिक ज्ञान
हमें इस बिंदु के
पार जाने की आज्ञा देता है।
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अम्मा
मैंने नहीं सुनी कभी
उनके क़दमों की आहट
जब अम्मा सवेरे जल्दी उठकर
रसोई बनाती है
मैंने नहीं सुनी कभी
उनकी चूड़ियों की आवाज़
जब वो सबके मन के
जाले हटाती है
मैंने नहीं सुनी उनके
मन की आह
जिस दिन वो तारे
देखना भूल जाती है
मैंने देखा है
कि कैसे एक चिरैया
आठ पहर तक
एक ही डाल पर ‘चुप’
बैठ जाती है।
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तितलियाँ
कुछ लोगों ने बगीचे से
सारी तितलियाँ चुराकर
घर की दीवारों पर चिपका ली हैं
सिर्फ इसलिए
कि वो तितलियों के रंग बचा सके
तितलियों ने भी
अपने अस्तित्व को बचाने के लिए
ख़ुद को दीवारों में चुनवा लिया है
फूल भी अब
खुले आसमान के नीचे नहीं
किसी छत के नीचे रहना
ज़्यादा पसंद करते हैं
गमले में रखा धरती का टुकड़ा
आकाश का दिवास्वप्न बन गया है।
– रजनी मलिक