कविता-कानन
अबकी बारिश
अबकी बारिश सिर्फ पानी है,
और तुम इन बूँदों से बहुत दूर
सुना है,
अब बारिश की बौछारें,
तुम्हारे शहर में भी आ गयी हैं।
तुमने तो बताया था,
बारिश की ठंडी बूँदों से,
तुम बहुत कतराते हो।
पर जानते हो,
शायद आज खुदा की नीयत ने हम पर कुछ रहम किया है,
और ईश्वर ने भी बूँदों की,
फुहार सी मेहरबानी की है।
तो सुनो न,
नाराज मत हो जाना,
कुछ कह दूँ,
तो दिल से मत लगा लेना,
इस बारिश में मेरी खातिर,
कुछ पल के लिए ही सही,
इन बूँदों से प्यार कर लो।
सुना है,
इस भीगे मौसम में,
बीज जल्दी उग जाते हैं
तो एक बीज मोहब्बत की
तुम भी उगा दो न,
शायद हमारा प्यार,
और भी तेजी से पनपने लगे.
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हिचकिचाहट
बोलो न,
आज तुम भी तो कुछ कहो न,
माना कि इस वायरस ने,
रिश्तों में,
दूरियाँ जरूर बढ़ा दी हैं
और सच कहूँ तो,
तुम दूर जरूर हो,
पर इस लॉकडाऊन की
मजबूरी ने
हमें उम्मीद से ज्यादा
और भी करीब
नहीं कर दिया है क्या?
सच बोलो न,
तुम भी तो कुछ कहो न!
माना कि फासले हैं,
मजबूरी है,
मिलने की बेकरारी है,
पर कोई तो बात है,
समय अब जितना दे पाते हो,
उस तरह ख़्यालों में भी नहीं थे.
नदी के दो किनारों की तरह,
हम कभी न भी मिल पाएं,
पर इस हिचकिचाहट को,
अब और,
बढ़ावा मत देना…
सच आज कुछ तो बोलो न,
तुम भी तो कुछ कहो न….
– सुरभि बेहेरा