कविता-कानन
अगर तुम जानते हो
भगवान ने गुदगुदाया है
ये नींद में मुस्कुराता बच्चा जानता है
बड़ा होकर वह नींद में नहीं मुस्कुराता
लेकिन अब उसका भगवान कौन है
किस धर्म का है, वह ये जानता है।
कब, कहाँ, कैसे, किसे
कितना लालच देना है
कौन-सी बातें संज्ञान में लेनी है
किन मुद्दों को अनसुना करना है
ये देश की राजनीति जानती है।
कौन हिन्दू है, कौन मुसलमान
ये धर्म की सच्चाई जानती है
मगर तुम्हारे हाथों से उठा पत्थर तो
सिर्फ इंसान को मारना जानता है।
ये कटते पेड़, बढ़ती आबादी, कूड़े
और बीमार करती हवाएँ
इन सब में सूर्य के चक्कर लगाती हुई पृथ्वी
डर से कितना काँपती है
ये ब्रम्हाण्ड के बाक़ी ग्रहों से
बेहतर कौन जानता है?
अगर तुम जानते हो
तो इस सच्चाई को मार देना
परिवर्तन लाना
अमर-कविता बनने मत देना।
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समाज की चेतना
पहले स्त्रियाँ सस्ती हुईं
जब आवाज़ उठाई
तो ईर्ष्या ध्वनित होने लगी।
स्त्री की अस्मिता कुचलने वाले नंगे हुए
तो बलत्कृत स्त्रियों की जली लाशें मिलीं।
उसके बाद इंसाफ़ मरा
फिर स्त्रियाँ मरीं
हाय! सबसे अन्त में
समाज की चेतना मरी।
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चीखती एक घाटी
‘बचाओ-बचाओ’ चीखती एक घाटी है
जहाँ विशाल पहाड़ गोलियों से छेदे जाते हैं
जिनके घावों की संतान हैं- सुन्दर झीलें
जिसमें उनके आँसू बहते हैं
जहाँ थोड़े से कम रोज़गार तैरते हैं
कश्मीर अब वो जख़्म है
जो आने-जाने वाली सियासत से
कभी नहीं सूखता
उससे मुस्तक़िल खून रिसता रहता है
एक निचोड़ता मौसम जो सिर्फ
वहाँ की आवाम महसूस करती है
कहीं मरने वाले कश्मीरी और जवान
ओस बनकर टपकते हैं
तो कहीं पर स्वाद मौत का
निरंतर बरसता है
भयानक घटनाओं से भरा इतिहास है
इसे जन्नत मत कहो!
– तान्या सिंह