चौथे संस्मरण से पहले उनकी एक ग़ज़ल का मतला और दो शे’र देखिएगा..वास्तव में ये शे’र उनके व्यक्तित्व को बयान करते हैं..
तुम्हारे दुःख में, हमारी भी पीर शामिल है
ये आत्मा, ये समूचा शरीर शामिल है
वो जिसके बाद, लगी उसकी शक़्ल, उस जैसी
कई लकीरों में वो भी लकीर शामिल है
कबीर को तो पता भी न था ‘ज़हीर’ है कौन
मगर, ‘ज़हीर’ के कवि में कबीर शामिल है
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ज़हीर सर से कुछ वर्षों के साथ में मैंने दो बातों पर ध्यान दिया। पहला ये कि बहुत से लोग उनके पास अपनी ग़ज़लों की पांडुलिपि लेकर दुरुस्त करवाने के लिए आते हैं जिससे उनकी प्रकाशित होने वाली पुस्तक त्रुटि-रहित हो। दूसरा, मुझ जैसे बहुत से लोग उनके पास ग़ज़ल संबंधी शंकाओं को लेकर पहुँचते थे और जो नहीं पहुंच पाते थे वे मोबाइल कॉल करके पूछते थे। ज़हीर सर का भरसक प्रयास होता था कि किसी को निराश न करें। पर शायद उनका ये सादा और संकोची व्यवहार उनके अपने लिखने-पढ़ने के काम को प्रभावित कर रहा था। कभी दबे स्वर में उन्होंने मुझे अपनी इस परेशानी से अवगत भी कराया, कभी मैंने महसूस भी किया।
दिसंबर 2019 के अंत के दिनों में, मैं सर के घर बैठा था। मैंने बड़े संकोच में साथ उनकी आज्ञा लेकर उनके सामने एक सलाह रखी। मैंने कहा, “सर इतने लोग आपसे ग़ज़ल सीखने और अपनी ग़ज़लें सुधरवाने अलग-अलग तारीख़ और समय पर आते हैं आपको भी असुविधा होती है। बेहतर होता आप बाक़ायदा हम जैसों को ग़ज़ल सिखाना शुरू कर दें, ज़्यादा नहीं, महीने में केवल एक-दो दिन, जिससे आपकी अवांछित व्यस्तता कम हो”। थोड़ा सोचने के बाद उन्होंने सहमति तो दी पर फिर दो-तीन सवाल रख दिए। पहला, क्या लोग सीखने के नाम पर आएंगे? पहले सवाल के जवाब में मैंने वहीं बैठे-बैठे कुछ लोगों से बातें कीं जो ग़ज़ल लिख रहे थे या लिखना चाहते थे पर मेरी तरह अल्प ज्ञानी थे। कुछ का नाम और नंबर ज़हीर सर ने ही मुझे दिया कि इनसे भी बात कीजिए। मैने सबसे बात की। नतीजा, क़रीब बारह-तेरह लोगों में से आठ ने सहमति दे दी। कुछ ने अपनी व्यक्तिगत समस्या बता कर मना कर दिया। दूसरा सवाल, अगर आठ-दस लोग आ गए तो कहाँ बैठेंगे? जवाब में मैंने कहा, “मेरा ऑफ़िस, जो नेहरू नगर में है वो रविवार को बंद रहता है और उसमें आठ-दस लोग एक साथ बैठ सकते हैं“। बस सभी समस्या का समाधान मिल गया और ये निर्णय हुआ कि माह के दूसरे और चौथे रविवार को दोपहर दो से शाम पांच बजे तक हम सभी मेरे ऑफिस में आएंगे, ज़हीर सर पढ़ाएंगे (बिना कोई फ़ीस लिए) हम सब पढ़ेंगे। ये भी तय हुआ कि मैं प्रति दूसरे और चौथे रविवार दोपहर एक बजे अपने घर से निकलकर सर के घर जाऊंगा और उनको लेकर नेहरू नगर अपने ऑफिस आऊंगा, फिर कक्षा के बाद मैं सर को वापस उनके घर छोडूंगा। उनके समर्पण को देखकर मैं अवाक था। इस उम्र में भी उनमें सिखाने का जुनून कमाल का था।
सब कुछ प्लान के हिसाब से हो रहा था। 12 जनवरी, 2019, रविवार को पहली कक्षा लगी जिसमें ज़हीर सर और मेरे अलावा अन्य छः लोग उपस्थित हुए। क़रीब तीन घंटे की पढ़ाई में ही मैं समझ गया कि कुछ अच्छा होने जा रहा है। परन्तु एक कक्षा बाद ही ये संख्या घट कर पाँच रह गई (ज़हीर सर को लेकर)। अपनी-अपनी व्यक्तिगत व्यस्तताओं के कारण तीन लोग आगे की कक्षा में शामिल होने में असमर्थ रहे। परिणामस्वरूप चार ही छात्र बचे परंतु हम चारों ही बहुत पंक्चुअल रहे और ज़हीर सर के शिक्षण में ग़ज़ल के अपने अल्प ज्ञान को पूर्ण करने में जुटे रहे। विश्वास कीजिये हम चारों बाक़ायदा अपनी कॉपी-पेन लेकर कक्षा में आते थे, तीन घंटे पढ़ते थे। टेस्ट भी होता था। उत्तर न देने पर ज़हीर सर से थोड़ी डांट भी खाते थे कि आप लोग घर पर जाकर प्रैक्टिस नहीं करते। एक वाक्य में कहूँ तो हम फिर से स्कूली जीवन जी रहे थे। इस दौरान ज़हीर सर ने एक-दो बार ये भी कहा, “मैं सोचता हूँ कि मैं पता नहीं कब तक रहूँगा, इसलिए जब तक हूँ और जो थोड़ा-बहुत मैं जानता हूँ, आप लोग को देकर जाना चाहता हूँ”। हम कहते कि सर आप ऐसा क्यों बोलते हैं, अभी हम सबको बहुत लंबा सफ़र साथ मे तय करना है। इस अप्रिय बात को हम सब भी लंबा नहीं खींचना चाहते थे, इसलिए विषय बदल देते थे। बताना चाहूंगा कि इस दौरान ज़हीर सर के आंखों की समस्या बढ़ती जा रही थी और उनको देखने में दिक्कत भी बढ़ती जा रही थी। उन्होंने बताया कि आंटी (उनकी पत्नी) उनसे बार-बार कहतीं हैं कि आँखें ठीक नहीं हैं फिर भी हर वक़्त क़िताब-कॉपी (ज़हीर सर पढ़ाने वाला मटेरियल कॉपी पर नोट करके लाते थे, वैसे भी ज़्यादातर समय वो लिखने-पढ़ने में ही बिताते थे) में लगे रहते हैं। ज़हीर सर का उनको जवाब होता था, “लिखना-पढ़ना नहीं करूंगा तो क्या करूँगा, बैठे-बैठे तबीयत और ख़राब हो जाएगी”।
धीरे-धीरे ये कक्षा अनवरत चलते हुए सवा साल पुरानी हो गई,। ग़ज़ल के अरूज़ (छन्द शास्त्र) को लेकर हम सभी के अंदर का आत्मविश्वास बहुत बढ़ा हुआ था। तक्तीअ करना, काफ़िया, रदीफ़, बह्र के ज्ञान, मात्रा गिराना, वस्ल करना, तनाफुल दोष, हुस्न-के-मतला, तकाबुल-के-रदीफ़ आदि के साथ-साथ हिंदी ग़ज़ल की अन्य बहुत-सी बारीकियां हम जान चुके थे। हम जान चुके थे कि जैसे फ़ारसी ने अरबी ग़ज़ल के सारे नियम माने, उर्दू ग़ज़ल ने फ़ारसी ग़ज़ल के सारे नियम माने, वैसे ही हिंदी ग़ज़ल भी उर्दू ग़ज़ल के नियमों पर ही चल रही है। हम जान चुके थे कि हिंदी ग़ज़ल, उर्दू ग़ज़ल के किन बातों को मानती है और क्यों और किन बातों को नहीं मानती है और क्यों, हम जान चुके थे कि मान्य 19 बहरें कौन-सी हैं, हम जान चुके थे कि ग़ज़ल के 8 मूल रुक्न कौन-कौन से हैं जिनसे बहरें बनती हैं और ज़िहाफ़ क्या होता है और क्यों होता है, आदि-आदि।
हमारी कक्षाएं अच्छे से चल ही रही थीं कि कोरोना महामारी के प्रकोप का दौर शुरू हुआ और 8 मार्च 2020, दूसरे रविवार को पहले लॉक डाउन के पहले की अंतिम कक्षा लगी। 22 मार्च 2020 को माह की दूसरी कक्षा लगनी थी पर उसी दिन से जनता कर्फ़्यू लगा और 24 मार्च से फुल लॉक डाउन। पर सुखद ये रहा कि 12 जनवरी 2019 से 8 मार्च 2020 तक (क़रीब 15 महीने) सबने बहुत ज्ञान अर्जन किया।
लॉक डाउन के बाद जनवरी 2021 से पुनः कक्षा चालू करने का निर्णय हुआ। इस बीच हमसे छः नये सदस्य जुड़े और निर्णय हुआ कि अब हिंदी भवन में कक्षा लगेगी जिसका किराया प्रतिदिन का रु. आठ सौ था जिसे हमने चंदे के रूप में एकत्रित किया। जनवरी और फरवरी में चार कक्षाएं चलीं। पर इस बार भी दस सदस्यों के आने की उम्मीद के इतर केवल 3-4 लोग ही आ रहे थे। कभी किसी की व्यक्तिगत समस्या आड़े आ रही थी कभी किसी की। 27 फरवरी 2021, शनिवार (यह अंतिम कक्षा, इस बार किसी कारणवश रविवार के स्थान पर शनिवार को लगी) के दिन सर ने बताया कि एक महीने के लिए उनकी योजना चंदेरी (सर का पैतृक शहर और भोपाल से चार घंटे की दूरी पर)) जाने की है, अतः अब अप्रैल में कक्षा लगेगी। अंतिम कक्षा के बाद मैं सर को अपनी कार से उनके घर छोड़ने जा रहा था। रास्ते में वो थोड़े दुःखी स्वर में बोले, “मनीष, 3-4 लोगों की कक्षा के लिए तीन घंटे का रु आठ सौ देना कहाँ की समझदारी है, अच्छा हो कि हम वापस आपके ऑफ़िस में ही शिफ़्ट हो जाएं”। मैंने भी स्वीकारोक्ति में सिर हिलाया। उन्होंने आगे फिर कहा, “मैं सोचता हूँ, मैं पता नहीं कब तक रहूँगा, जब तक हूँ, जितना कुछ जानता हूँ, आप लोगों को दे कर जाऊँ”..मैं चुप था और बस इतना ही कहा, “सर आप बार-बार ऐसा क्यों कहते है”?
पूर्व नियोजित प्लान के तहत 2 मार्च को ज़हीर सर एक महीने के लिए अपने गृह नगर, चंदेरी चले गए।
क्रमशः….