किसी मीनार से पूछो
मुहब्बत कितनी ऊँची है,
उठाके वो भी नज़रें
आसमां को ताका करती हैं
तड़प दिल में लिए
सागर की बाहों में समाए जब,
तो, दरिया की लहर-लहर
कहाँ फिर दरिया रहती है?
हवाएँ चुलबुली होकर
चमन से जब गुज़रती हैं,
गुलों में ढेर रंगों-बू
बड़ी शिद्दत से भरती हैं
किसी सरसों की बाली-सी
यह जब-जब चमकती है,
मुहब्बत की फसल, पलकों तले
तब खूब खिलती है
दिल की बंद गलियों में
बेकल डोलती है जब,
तब इल्ज़ाम दे कोई
तो आँखों से बरसती है
किसी मासूम बच्चे-सी
दिल से काम लेती है,
ज़रा फुसलाओ तो
झट राज़ अपने खोल देती है
बड़ी शौक़ीन तबियत है
किसी की हो गयी तो बस,
तमाम अपनी उमर
उस शख्स पर कुर्बान करती है
मुहब्बत क्या है? क्या है इश्क़?
क्या अशआर हैं खाली?
जो बस अशआर हैं तो, दुनिया क्यों
इसमें ही जीती और मरती है?