1.
रिक्त हुई धरा
रिक्त स्वरों का सागर
रिक्त नगमों के सदन
रिक्त नाद से अम्बर
रिक्त हुए पात्र
मधुर मुस्कानों के
रिक्त हुआ देश
पंचम पहचानों से
सोई तानें
सोये अलाप अखंडित
सोये साज
सोई राग विमंडित।
सोई वीणा
गिरा की क्रोड में जाकर
सोई वंशी
अजर-अधर पर आकर
विकल स-र-ग-म
विकल वसन्त का सौरभ
विकल ह र म न
विकल विलाप आरम्भ
विकल घन वाद्य
साज आलय में मातम
विकल सुषिर-तंत
छलनी है आतम।
***************
2.
किसके मुख से
छलकेंगे
ज्योति के पूरित कलश?
प्रभात के
मंगल मुहूर्त में
कौन बाँटेगा रत्नों का धन?
कौन बतायेगा
भोले जग को
श्याम के साँचे नाम?
कौन प्रकटायेगा
गीतों में बंशी के नाद
कौन करेगा
नौबतखानों को पुनः आबाद?
बनकर संवेदना
कौन
वतन की आंखों से अजस्र बहेगा
किसकी वाणी से पत्थर
ज्वाला बन दहेगा?
बन रूपमती कौन
भ्रमर को
शतदल पर खींचेगा
कौन चेतक की टापों से
शौर्य रस सींचेगा?
कैसे निभाएंगे
शाहजहां, जमाने के
अपने वादें
कौन देगा स्वर मुमताजों को?
झीलों के मर्मरित कगारों पर
कौन बजायेगा साज़
कौन बनेगा
झरनों की कलकल आवाज?
कौन देगा चुनौती
अकबरी दरबारों को
बन आवाज
कौन
रोकेगा निठुर सरदारों को?
होकर मुखरित
कौन देगा
वाणी
मौन-कथाओं को?
बन बदरा कैसे
छाएंगे प्रेमी
प्रेमिका-चक्षु पर?
रोयेगी आम्रपाली
गगन के
नीले तल पर
रोयेगी चित्रलेखा
उदास
पल पल हर।
कौन गायेगा हेमन्त
शिशिर
कौन गायेगा
कौन बसन्त संग
प्रेम के
नगमें बरसायेगा?
कौन विहाग के सुषिर मुख से
उड़ते विहग
पुकारेगा
तान भूपाली-अस्त्र
कौन
सत्ता-भूपाल डिगायेगा?
एक असीम रिक्ति
जो
कभी न भर पाएगी
सम्भव नहीं अब धरती पर
कोई
लता आएगी!