1.
मार्च उदासी के दिनों की पहली सीढ़ी है
लाल-पीले और केसरिया दुपट्टे ओढ़े जंगल
नहीं जानते
कि उनके दुपट्टे के एक सिरे पर बैठी है
भूरी उदासी
जो ख़ामोश और भयभीत है
आने वाले दिनों की तपन और बेचैनी से
किसी आँचल के कोने में बंधी
गाँठ की तरह
यादों की अनगिनत गाँठे
इन दिनों उगेंगी
टेसू और पलाश पर
फागुन रह रहकर कसमसाता रहेगा
केसरिया घावों की पीड़ा लिए
खेतों में लहरातीं
गेहूँ की अधपकी बालियाँ
तेज़ धारदार हंसियों पर लिखेंगी
दूर देश से दाना चुगने आये पंछियों से
अपने प्रेम की कहानी
और मैं आहत होकर बुद्बुदाऊँगी
रिश्ते बनते हैं बड़े धीरे से
जरा शाख़ पर पकने देते
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2.
मत छलना उसे
जिसने किसी अबोध बालक की
दंतुरित मुस्कान-सा
अपना निरामय विश्वास
तुम्हारे हाथों में सौंप दिया
मत छलना उसे
जिसने तुम्हारी चुगली खाती
तमाम आवाज़ों की ओर से
फेर लिए अपने कान
और तुम्हारी एक पुकार पर
बिखेर दी अपनी अनारदाना हँसी
मत छलना उसे
जिसने सदियों से
अपनी आत्मा पर बंधी
पट्टियों को खोलकर
उसमें झाँकने का हक
तुम्हें दिया
मत छलना उसे
जिसने तुम्हारी ओर
इशारा करतीं तमाम उँगलियों को
अनदेखा कर
अपनी उँगली थमा दी तुम्हें
मत छलना उसे
जिसने झूठ से बजबजाती
इस दुनिया में
सिर्फ़ तुम्हें ही सच समझा
अपनी फितरत से मजबूर तुम जब
फिर भी छलोगे उसे
तो यकीनन
नहीं बदल जाएगी ग्रह-नक्षत्रों की चाल
धरती पर नहीं आएगा भूकंप
पहाड़ नहीं होंगे स्खलित
नदियों में बाढ़ नहीं आएगी
तट बंध नहीं होंगे आप्लावित
दिन और रात का फर्क भी नहीं मिटेगा,
मगर ताकीद रहे
कि किसी की भाषा से
विलुप्त हो जाएंगे
विश्वास और उसके तमाम पर्यायवाची शब्द
और शब्दों के पलायन से उपजा
यह रिक्त स्थान ही
एक दिन लील जाएगा तुम्हें!