गाड़ी पंचर हो जाये तो मुद्दतों से मिला सुख चंद मिनटों में खत्म हो जाता है। वह गाड़ी तभी तक है जब तक चल रही है खड़ी गाड़ी स्क्रेप है , जैसे आदमी तभी तक आदमी है जब तक चल रहा है जिस दिन पंचर हुआ बाँडी हो जाता है। मोहब्बत में दिल का टूट जाना, सौदे में धोखाधड़ी हो जाना और चलती गाड़ी का पंचर हो जाना यह भी प्रक्रिया का एक पक्ष होता है।
पंचर होकर गाड़ी अपना महत्व प्रतिपादित करती है समाज को संदेश देती है कि ज़्यादा फूलो मत क्योंकि एक बारीक सी कील अच्छे अच्छों की हवा निकाल देती है। टायर और आदमी कितने भी तंदरुस्त हो पंचर हो ही जाते है। आज तक ऐसी कोई गाड़ी नहीं हुई जिसने पंचर हो जाने का दुःख न झेला हो।
हम जीवन की गाड़ी को स्पीड ब्रेकर में तो संभाल लेते है , गहरे गड्ढे से बचा लेते है लेकिन मार्ग की एक अनजान कील पर नज़र नहीं रख पाते। हम सोचते है राह में बस फूल ही फूल है और हमारा पैर कांटे पर रखा जाता है। आदमी हो या गाड़ी तभी तक अच्छे है जब तक चल रहे है जिस दिन पंचर हो जाते है तो बन जाते है बोझ। गाड़ी के नसीब की सब से अच्छी बात यह है कि वह सड़क पर पड़ी एक अनजान कील से पंचर होती है लेकिन आदमियों का यह दुर्भाग्य होता है कि वे घर में ही पंचर कर दिये जाते है।
हम टायर के पंचर होने को ही पंचर मानते है जबकि हमारे इर्द गिर्द पंचर होने के अनेक मामले है। यहां पंचर योजनायें , पंचर घोषणाएं , पंचर कार्यक्रम , पंचर मनोरंजन , पंचर विचारधारा , पंचर मानसिकता , पंचर इरादे बिखरे पड़े है लेकिन हम कायर टायर में ही ठहर गए है। पंचर होने से हमें प्रेरणा लेना चाहिये कि हमारे सोचने और होने के बीच कोई अदृश्य है जो ज़्यादा उपर उड़ने वालों की हवा निकाल देता है।
गाड़ी के पंचर होने के कुछ रोचक तत्व है , जिस दिन गाड़ी पर कोई महत्वपूर्ण काम नहीं निपटाना होता और हम बस मस्ती में घूमते है गाड़ी उस दिन पंचर नहीं होती है। गाड़ी उस दिन पंचर होती है जिस दिन गाड़ी पर जाकर बहुत से ज़रूरी काम पूरे करने होते है। गाड़ी के पंचर होने का भी एक स्थान मुकर्रर होता है। गाड़ी उस स्थान पर पंचर नहीं होती जहां पंचर बनाने वाला सामने मौजूद है। गाड़ी वहां पंचर होती है जहां दूर दूर तक कोई पंचर बनाने वाला नहीं है। कोई आदमी जब गाड़ी पर अकेला जा रहा होगा तब पंचर नहीं होगी लेकिन महिला मित्र को लेकर जा रहा होगा तब टायर से उसका सुख देखा नहीं जायेगा , टायर कहने भर को नीचे है पर उसका ध्यान ऊपर रहता है और वह ईर्ष्यालु फट जाता है। सड़क के आदमियों का दावा है कि नेता और अधिकारयों की गाड़ी उतनी पंचर नहीं होती जितनी प्रेमियों की होती है , मानो जैसे पंचर होने में आशिकों को आरक्षण प्राप्त है।
जब अनजान मार्ग पर गाड़ी पंचर हो जाती है और किसी राह चलते आदमी से पूछो कि पंचर बनाने वाला कहां मिलेगा तो वह कहता है बस थोड़ा आगे ही है। इस जवाब में जो “आगे“ है बस वही सत्य है “बस“ और “थोड़ा” सहानुभूति है झूठी तसल्ली है। इस झूठ में पाप नहीं लगता यह मान्यता प्राप्त झूठ है। जब पंचर वाले की दुकान ऐसे स्थान पर हो जहां पांच किलोमीटर इधर और पांच किलोमीटर उधर कोई पंचर बनाने वाला नहीं हो उस दुकान में पंचर नहीं बनाया जाता बल्कि नया टयूब बेचा जाता है। मिस्त्री ने गाड़ी को हाथ लगाया और बोला नलकी उखड़ गई है नया ट्यूब डालना होगा बोलिये क्या करना है? यह तो वैसा ही हुआ कि कक्षा में गुरूजी ने छात्र से पूछा – तुम जंगल में अकेले जा रहे हो और सामने से शेर आ जाये तो क्या करोगे ? छात्र ने कहा – मैं क्या करूंगा जो करेगा शेर करेगा।
रास्ते में पेट्रोल खत्म हो जाये तो आदमी किसी से थोड़ा सा पेट्रोल मांग सकता है लेकिन गाड़ी पंचर हो जाये तो किसी से हवा नहीं मांग सकता। पंचर गाड़ी को खीचते हुए ले जाओ तो जो नास्तिक है उन्हें भी ख़ुदा याद आ जाता है। वह भाषा का विद्धान हो या अनपढ़ गंवार जब गाड़ी पंचर हो जाती है तब दोनों की भाषा एक जैसी हो जाती है।
जैसे साहित्य में हर रचना की रचना प्रक्रिया एक जैसी नहीं होती वैसे ही सड़क पर हर पंचर की पंचर प्रक्रिया भी एक जैसी नहीं होती। जिस प्रकार कुछ कश्तियां वहां डूब जाती है जहां पानी कम था उसी प्रकार कुछ गाड़ियां उस मार्ग पर पंचर हो जाती है जहां गड्ढे नहीं थे और चिकनी सपाट सड़क थी।
यह बहुत अच्छी बात है कि अभी तक पंचर का राजनीतिकरण नहीं हुआ है। यह राहत देने वाली बात है किसी भी पार्टी ने अपने घोषणा पत्र में पंचर को लेकर बड़ी बड़ी घोषणा नहीं करी है, सभाओं में पंचर को लेकर बड़े बड़े वादे नहीं किये गये है। हालांकि सरकार में बहुत से मंत्री पंचर है लेकिन कोई पंचर मंत्री नहीं है। अगर ऐसा होता तो सोचिये कैसा होता मेरा पंचरनामा।