आसमान से उतर कर सीधा दिल में घर कर गयी थी, कोई नाम था अगर जुबां पर उसी का था! कैटरीना, कैटी, कटटो, चांद, शोना न जाने कितने शहद घुले नामों से उसे पुकारा जाता। नैन थे के उसे देख वारे वारे जाते! दिल का टुकड़ा थी, चांद का मुखड़ा थी। वो थी ही ऐसी रेशम जैसे बाल, हिरनी जैसी आंखें जो कुंद की दो पत्तियाँ रख दी हो भाल पर! उसकी लजीली पनीली आंखों में गर नजर भर देख लो तो झुका लिया करती थी सजदे में।
एक पल भी आंखों से दूर हो तो दिल घबराने लगता। जालिम जमाने के ख्याल दिल को डराने लगते। उसे बेरहम दुनिया की भला क्या खबर, उसको तो इतना ही पता था कि भूख लगेगी तो टुकड़ा तोड़ कर मुंह में दिया जाएगा, प्यास लगेगी तो जबरन दूध पीने की मिन्नतें की जाएंगीं और वो सौ नखरों के बाद दो घूंट पीकर अहसान जताएगी।
आजकल ध्यान गली मौहल्ले के संगी साथी के साथ ज्यादा रमने लगा था, दिन भर घर से गायब रहती अंधेरा होने पर लौटती। आज सुबह से गायब थी बार बार नजर दरवाज़े पर जाती! कान उसकी आहट पर लगे थे। सर्दियों का मौसम सूरज जानें कहां धूनी रमाए बैठा था। मैं धूप की चाह लिए हाथ में चाय का गिलास लिए छत पर आ गयी! सूरज बादलों के साथ लुका-छिपी में मस्त था! छत की बगीची के फूल शबनम में नहाए कांप रहे थे कि अंजुरी भर धूप पीने को मिल जाए।
अभी एक दो घूंट चाय पी ही थी कि केटी के चिल्लाने की आवाज़ सुनाई दी। मैंने झट से छत से नीचें झांक कर देखा तो आंखों के आगे सृष्टि घूम गयी। जिस्म में काटो तो खून नहीं था! कटटो की चीखें पिघलते सीसे की तरह मेरे कानों में पड़ रही थी! तभी सड़क के एक दुकानदार ने गर्दन उठा कर मेरी तरफ अश्लील मुस्कराहट से देखा, मैं शर्म से गढ़ी जा रही थी! मैंने उस कुत्ते को खून भरी नज़रों से देखा!
कटटो को गली के सारे वहशी गुंडों ने घेर रखा था। भूरा झबरैल जो कटखने के नाम से जाना जाता था, उसने अपनी पूरी ताकत से कैटी को दबोच रखा था। कैटी के गले से अब चीखें भी नहीं निकल रही थी वो मरी मरी सी कराह रही थी। सारे वहशी एक दूसरे पर गुर्रा रहे थे कि कटखने के बाद उनकी बारी!!
मुझे समझ नहीं आया क्या करूं, मैंने आसपास नजर घुमाई। पास ही एक लोहे का डंडा पड़ा था। मैंने उसे उठाया और दनदनाती नीचें पहुंची, मैंने आव देखा न ताव उसे गुंडे कुत्ते के ऊपर गर्म चाय का ग्लास उडेल दिया और कस कर एक डंडा उसकी कमर पर दे मारा वो बिलबिलाता कैटी से दूर हटा। मैंने सारी शर्म हया ताक पर रख कैटी को गोद में उठा लिया, कैटी की स्त्री देह से टपकती खून की बूंदों ने मुझे घायल कर दिया। दिल खून के आंसू रोने लगा। अभी छ महीने की ही थी कैटरीना मेरी गोद का स्पर्श पाकर कराहने लगी! उसकी कोमल घायल देह पर मैं क्या मरहम लगाती, मेरी ममता की बरसात भी उसकी पीड़ा को कम नहीं कर पा रही थी!
इस दुर्दांत घटना को बीते हफ्ता बीत गया। कैटी अब सीढ़ियों से नीचे नहीं उतरती थी, हां मोहल्ले भर के वो भेड़िये जरूर रोज आकर कैटी का इंतजार देखते कि कब वो नीचें उतरे! मेरी नजर हर वक्त कैटी पर रहती। इन दिनों वो कुछ खा पी नहीं रही थी। हर वक्त मरणासन्न सी छत पर धूप में सोती रहती। सारी चंचलता, शरारतें जानें कहां खो गयी थी! मैं जब भी फिक्रमंद होकर उसका माथा सहलाती, एक सुकून को महसूस करती आंखें बंद कर लिया करती, कभी मेरी गोद में सर रख देती! सारी देह सूख कर पिंजर हुई जा रही थी और पेट फूलता जा रहा था! मुझे जब उसके गर्भ से होने का अह्सास हुआ तो सर पकड़ लिया! एक बच्ची, बच्चों को जन्म कैसे देगी! पहली बार स्त्री देह की वेदना ने अंदर तक दुख से भर दिया!
खाना पीना लगभग छूट गया था उसका। नाम भर को खाती ! जैसे तैसे दिन कटने लगे। फिर वो मनहूस रात भी आई! शाम से ही आसमान स्याह था। रह रह कर बिजली चमकती! कैटी भी शाम से बेचैन थी कभी छत पर कभी आंगन में चक्कर काट रही थी। उसकी बेचैनी मुझे बेचैन कर रही थी! मैं रसोई में थी कि करीब नौ बजे के वक्त प्रसव वेदना की अथाह पीड़ा को झेलते हुए उसने छ बच्चों को जन्म दिया। मैं हतप्रभ थी कि आखिर उसके नन्हे से जिस्म में कहां समाए थे यह! खिलौने जैसे नन्हे नन्हें छोटी सी जान। एक पल को मेरी आंखों में करुणा लहराई!
कैटी अपने बच्चों को चाट रही थी, मैं उसके लिए हल्दी मिला दूध ले आई। बाद मुद्दतों उसने दूध पिया। मेरे मन को चैन आया! फिर जानें क्या हुआ! कैटी अपने बच्चों के पास से उठ गई। उसने आंगन में छत पर चक्कर काटने शुरू कर दिए! कोई भयानक दर्द उसके अंदर करवटें ले रहा था! मेरा खून सूखा जा रहा था! आंखों में आंसू लबालब थे। कैटी मेरे कमरे में आ गई। मैं उसे अपने कलेजे से लगा लेना चाहती थी। मैंने उसे अपनी गोद में लिटाया। एक पल को वो लेटी। अपनी गहरी गहरी आंखों से मेरी रूह में उतरने लगी। उसकी सूरत में कोई तूफां करवटें लेता साफ दिख रहा था! मेरी चंचल हिरनी, एक पिंजर में तब्दील हो गयी थी! वो फिर छत पर चली गई! रात को एक बजे आंख खुली, कैटी सीढ़ियों में उल्टी कर रही थी। मैंने जाकर देखा तो आंखें फटी की फटी रह गईं! वो खून की उल्टियां कर रही थी! सारे जिस्म का खून निचुड़ गया था! उसने अपनी डूबी डूबी नजरों से मुझे देखा। मैंने उसका माथा छुआ तो वो आखिरी सांस भी छूट गई! मैं फूट फूट कर इतना रोई कि आंसू सूख गए।
कमरे में से चीं चीं की आवाजें आ रही थी शायद उन्हें पता चल गया था उनकी मां दुनिया छोड़ चुकी है। मैंने कटटो को आंगन में एक चादर पर लिटा दिया। फिर कमरे में उन छ पिल्लों को देखने गयी! कमबख्त हु ब हू उन गली के भेड़ियों की कार्बन कॉपी थे। मन दुख से भर गया! इनकी वजह से मेरी कैटी चली गयी! दुख ऐसा था कि शब्दों में बयां न होगा! यह स्त्री देह कमबख्त सबसे बड़ी दुश्मन है अपनी ही!
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