अनूदित लातिन अमेरिकी कहानी
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मूल : जूलियो कोर्टाज़ार
अनुवाद : सुशांत सुप्रिय
हम अमर हैं। मैं जानता हूँ, सुनने में यह किसी चुटकुले जैसा लगता है। मैं जानता हूँ क्योंकि मैं इस नियम के अपवाद से मिला। मैं एकमात्र नश्वर व्यक्ति से मिला। उसने मुझे अपनी कहानी कैम्ब्रॉन के एक शराबख़ाने में सुनाई। वह पिए हुए था इसलिए वह बिना फ़िक्र किए मुझे सच्चाई बता सका, हालाँकि शराबख़ाने का मालिक , वहाँ काम करने वाले लोग और वहाँ नियमित रूप से आने वाले पियक्कड़ — सभी उसकी बातें सुन कर इतना हँस रहे थे कि हँसते-हँसते उनकी आँखों से दारू बाहर आने लगी थी। मेरे चेहरे को देखकर उसे लगा होगा कि मुझे उसकी कहानी अच्छी लग रही है। इसलिए धीरे-धीरे वह मेरी ओर खिसक आया। अंत में हम दोनों कोने की एक मेज़ की ओर चले गए ताकि हम वहाँ बैठकर पी सकें और आराम से बातें कर सकें।
उसने मुझे बताया कि वह नौकरी से अवकाश ग्रहण कर चुका था और उसकी पत्नी गर्मी के इस मौसम में अपने माता-पिता के पास रहने चली गई थी। हालाँकि उसके यह कहने के लहज़े से मुझे ऐसा लगा जैसे उसकी पत्नी उसे छोड़ गई थी। दिखने में वह ज़्यादा बूढ़ा नहीं लग रहा था और बेवक़ूफ़ तो बिलकुल नहीं। उसका चेहरा सूखा हुआ-सा था और उसकी आँखें तपेदिक के मरीज़ जैसी थीं। सच कहूँ तो वह ग़म ग़लत करने के लिए पी रहा था , जैसा कि उसने शराब का अपना पाँचवॉं गिलास शुरू करते हुए बताया। लेकिन मैं उस शख़्स में पेरिस की गंध नहीं ढूँढ पाया — पेरिस की वह ख़ास गंध जिसे हम विदेशी आसानी से ढूँढ लेते हैं। उसके नाखून क़रीने से कटे हुए थे और उन पर कोई दाग-धब्बे नहीं थे।
उसने मुझे बताया कि कैसे उसने इस लड़के को पंचानवे नंबर की बस में देखा था। वह लगभग तेरह साल का लड़का था। वह बूढ़ा कुछ देर तक उसे टकटकी बाँधे देखता रहा और तब अचानक उसे यह हैरानी भरा अहसास हुआ कि दिखने में वह लड़का हू-ब-हू उसी की तरह लगता था , कम-से-कम उस लड़के की उम्र में वह जैसा दिखता था , ठीक वैसा। धीरे-धीरे वह पक्के तौर पर इस नतीजे पर पहुँचा कि वह लड़का उसकी किशोरावस्था का हमशक्ल ही था। लड़के की एक-एक चीज़ हू-ब-हू उस के जैसी थी — उसका चेहरा , उसके हाथ , माथे पर गिर आए उसके घुँघराले बाल, उसकी आँखें। और इनसे भी ज़्यादा उसका शर्मीलापन , कहानियों की किताब में शरण ढूंढने का उसका
ढंग, पीछे की ओर सिर झटक कर अपने माथे पर गिर आई लटों को हटाने का उसका तरीका , और अनाड़ियों जैसी उसकी हरकतें। लड़के की शक़्ल-सूरत और हाव-भाव उससे इतना ज़्यादा मिलते थे कि उसे इस बात पर हँसी आ गई , लेकिन जब वह लड़का रेनेस नाम की जगह पर बस से उतरा तो वह बूढ़ा भी उसके पीछे-पीछे वहीं बस से उतर गया, हालाँकि उसे मौंटपारनैसे जाना था जहाँ उसका एक दोस्त उसका इंतज़ार कर रहा था।
लड़के से बात करने का बहाना ढूँढ़ते हुए बूढ़े ने उससे किसी ख़ास सड़क के बारे में पूछा और जवाब में उसने वह आवाज़ सुनी जो ठीक उसकी किशोरावस्था की आवाज़ जैसी थी। वह लड़का भी उधर ही जा रहा था और कुछ देर तक वे दोनों चुपचाप एक साथ चलते रहे। तनाव से भरे उस पल में अचानक उसके ज़हन में जैसे कोई रहस्योद्घाटन हो गया।
मोटे तौर पर बात यह थी कि उसने उस लड़के का घर देख लेने का बहाना ढूँढ़ लिया। साथ ही उसने क़िले जैसे बने उस फ़्रांसीसी घर में बेरोक-टोक आने-जाने का तरीक़ा भी ढूँढ़ लिया। दरअसल वह कुछ समय तक एक गुप्तचर के रूप में काम कर चुका था। फिर भला उसकी यह ख़ूबी कब काम आती। उस लड़के के घर में बदहाली की एक मर्यादित गंध थी। वहाँ अपनी उम्र से बूढ़ी दिखने वाली उसकी माँ थी , काम से अवकाश ग्रहण कर चुके उसके मामा थे और दो पालतू बिल्लियाँ थीं। बाद में उनसे घुलना-मिलना ज़्यादा मुश्किल नहीं रहा। संयोग से बूढ़े के चचेरे भाई का बेटा उस लड़के का अच्छा दोस्त था और वह बूढ़ा इसी बहाने उस लड़के ल्यूक से मिलने हर हफ़्ते उसके घर जाने
लगा। लड़के की माँ बूढ़े को गरम-गरम कॉफी पिलाती और वे दोनों युद्ध, नौकरी और ल्यूक के बारे में बातें करते रहते।
जो बात एक आकस्मिक खोज से शुरू हुई थी वह अब रेखागणित के प्रमेय-सी विकसित हो रही थी। यह एक ऐसी शक्ल ले रही थी जिसे लोग किस्मत कहते हैं। यदि रोज़मर्रा के शब्दों में कहें तो ल्यूक दोबारा अस्तित्व में आया उसी बूढ़े का रूप था। यानी नश्वरता जैसी कोई चीज़ नहीं थी।
हम सभी अमर थे।
” हम सब के सब अमर हैं , बुज़ुर्गवार ! हालाँकि कोई इसे साबित नहीं कर सका था , किंतु इसे मेरे साथ होना था — पंचानवे नंबर की बस पर। जैसे पूरे तंत्र में थोड़ा-सा खोट। जैसे लहरदार समय का दोहराव। मेरा मतलब है, हू-ब-हू वही।
जैसे उसने किशोरावस्था की मेरी देह धारण कर ली हो। जैसे वह मेरा अवतार हो। लेकिन उसी समय में। मेरे बाद नहीं। यदि ढंग से सोचा जाए तो जब तक मेरी मृत्यु नहीं हो जाती , ल्यूक को पैदा ही नहीं होना चाहिए था। और फिर उस अनोखे हादसे के बारे में आप क्या कहेंगे जब शहर की भीड़ भरी बस में मेरी मुलाक़ात अपने ही पुराने प्रतिरूप से हो गई ! है न हैरानी की बात? लेकिन ऐसे मामले में आप भौंचक्के रह जाते हैं। आपको लगता है कि ऐसा कैसे हो सकता है। कहीं आपका दिमाग़ तो नहीं घूम गया। हालत यह हो जाती है कि आपको अपने चित्त को शांत करने के लिए दवाइयाँ खानी पड़ती हैं।
” जब मैं अपने मन की बात लोगों से कहता तो वे मुझ पर हँसते। मैं साफ़ देख सकता था कि वह मेरी किशोरावस्था का प्रतिरूप था , बल्कि वह भविष्य में भी ठीक मेरी ही तरह बनने वाला था। यह सिरफिरा जो अभी आप से बात कर रहा है ,ठीक उसकी तरह। उस के हाव-भाव , उसका व्यवहार, उसका पूरा व्यक्तित्व हू-ब-हू मेरा ही था। वह ठीक मेरी तरह खेलता था। वैसे ही गिरता और चोट खाता था। मेरी ही तरह उसके पैरों में भी मोच आ जाती थी। और वह मेरी ही तरह घबराता और शर्माता था।
” ल्यूक की माँ मुझे अपने बेटे की हर बात बताती जबकि वह बेचारा लज्जित या परेशान-सा वहीं खड़ा हो कर यह सब सुन रहा होता। उसकी नितांत निजी और अंतरंग बातें भी … उसके बचपन की घटनाएँ — उसके पहले दाँत के उगने का क़िस्सा , जब वह आठ साल का था तो कैसे चित्र बनाता था। उसकी बीमारियाँ … उसकी माँ को बातें करना अच्छा लगता था। एक बात तो तय थी कि उसे कभी मुझ पर संदेह नहीं हुआ। उसके मामा मेरे साथ शतरंज खेलते थे। दरअसल मैं उसके परिवार का हिस्सा बन गया था। यहाँ तक कि कभी-कभी महीने के अंत में तंगी के दिनों में मैं उन्हें घर चलाने के लिए पैसे भी उधार दे देता था।
” ल्यूक के अतीत के बारे में जानना आसान था। घर के बुज़ुर्गों से बातचीत के दौरान मासूम से सवाल पूछने भर की देर थी। चाचा जी के गठिया , देश की राजनीति और बढ़ती बेईमानी की बातों के बीच ल्यूक का ज़िक्र भी आ जाता। इसलिए शतरंज की चालों और मांस की क़ीमत में वृद्धि की गम्भीर चर्चा के बीच मुझे ल्यूक के बचपन की घटनाओं के बारे में भी पता चला और छोटे-छोटे साक्ष्य मिलकर ठोस सबूत बन गए। लेकिन मैं चाहता हूँ कि आप मेरी बात ठीक से समझें। इस बीच हम बैरे से कुछ और मँगवाते हैं।
” तो मैं कह रहा था कि बचपन में मैं जैसा था , ल्यूक इस समय ठीक वैसा ही था। लेकिन वह हू-ब-हू मेरा प्रतिरूप नहीं था। उसे समरूप कह सकते हैं,
समझे? मेरा मतलब है , जब मैं सात साल का था तो मेरी कलाई की हड्डी उतर गई थी जबकि उस उम्र में ल्यूक के कंधे की हड्डी उतर गई थी। नौ की उम्र में मुझे ‘खसरा’ हो गया था जबकि उसे इसी उम्र में ऐसा बुखार हो गया था जिसमें उसकी देह पर लाल चकत्ते निकल आए थे।
‘खसरा ‘ की वजह से मैं दो हफ़्तों तक बीमार रहा था जबकि ल्यूक पाँच दिनों में ठीक हो गया था। देखिए , समय के साथ विज्ञान तरक़्क़ी करता ही है। तो यह सारा मामला एक दोहराव था।
“चलिए मैं आपको एक और उदाहरण देता हूँ। कोने पर जो बेकरी की दुकान है, उसका मालिक नेपोलियन का प्रतिरूप है। लेकिन वह यह बात नहीं जानता क्योंकि प्रतिरूप में कोई बदलाव नहीं हुआ है। मेरा मतलब है, नानबाई की दुकान का वह मालिक कभी भी शहर की किसी बस में असली नेपोलियन से नहीं मिल पाएगा ; पर यदि किसी तरह उसे इस सच्चाई का पता चला तो शायद वह यह जान पाए कि वह नेपोलियन का दोहराव है , कि वह अब भी नेपोलियन को ही दोहरा रहा है। बर्तन धोने वाले व्यक्ति से एक ठीक-ठाक बेकरी का मालिक बनने तक की उसकी यात्रा में कॉर्सिका से फ़्रांस के सिंहासन तक की नेपोलियन की यात्रा का साम्य ढूँढा जा सकता है। और यदि उस बेकरी के मालिक ने ध्यान से अपने जीवन की घटनाओं का अध्ययन किया तो उसे अपने जीवन में भी नेपोलियन के जीवन से मेल खाती घटनाओं का अंबार दिखने लगेगा — मिस्र का अभियान , वाणिज्य-दूतावास की घटना, ऑस्टर्लिट्ज का युद्ध आदि। संभवत: उसे इस बात का आभास भी हो जाए कि कुछ बरसों के बाद उसकी बेकरी के साथ कुछ गड़बड़ होने वाली है। हो सकता है , उसका अंत भी नेपोलियन की तरह ही सेंट हेलेना जैसी किसी जगह में हो –
छठे माले पर स्थित किसी एक कमरे वाली तंग जगह में। क्या उसके लिए यह भी नेपोलियन की पराजय की तरह नहीं होगा ? चारो ओर एकाकीपन के जल से घिरा हुआ। तब भी उस बेकरी पर गर्व करता हुआ जो उसके जीवन में किसी राजसी ठाठ से कम नहीं थी। आप समझे ? “
देखिए, मैं सब कुछ समझ रहा था , लेकिन मुझे यह भी लगा कि हम सभी लगभग उसी उम्र में बचपन में बीमार हुए होंगे और फ़ुटबॉल खेलते हुए तक़रीबन हम सभी ने कुछ-न-कुछ तोड़ा होगा।
“मैं जानता हूँ , मैंने प्राय: दिखने वाले सामान्य संयोगों के अलावा और किसी चीज़ का उल्लेख नहीं किया है। उदाहरण के लिए , यदि आप बस में हुए रहस्योद्घाटन पर विचार करें तो भी ल्यूक का मेरे जैसा दिखना किसी गम्भीर महत्त्व की बात नहीं कही जा सकती। लेकिन जो बात महत्त्वपूर्ण थी वह थी घटनाओं का क्रम। और इसे समझा पाना मुश्किल है क्योंकि इसमें चरित्र और स्वभाव शामिल हैं , ग़ैर-सटीक स्मृतियाँ शामिल हैं , बचपन की पौराणिक कथाएँ शामिल हैं। जब मैं ल्यूक की उम्र का था , तो मैं एक बहुत बुरे समय से गुज़र रहा था जिसकी शुरुआत एक लम्बी बीमारी से हुई थी। स्वास्थ्य-लाभ के बीच में ही कुछ मित्रों के साथ खेलते हुए मेरी बाँह टूट गई। जैसे ही मेरी बाँह ठीक हुई, मुझे अपने स्कूल के एक मित्र की बहन से बेइंतहा प्यार हो गया। हे ईश्वर , यह ऐसा दुखदायी था जैसे आप उस लड़की से नज़रें नहीं मिला पा रहे हों क्योंकि वह आपका मज़ाक उड़ा रही है। ल्यूक भी बीमार पड़ा और जब वह कुछ ठीक होने लगा था , वे उसे लेकर सर्कस देखने गए जहाँ वह फिसल कर गिर गया और उसके टखने का जोड़ उखड़ गया। इस घटना के कुछ ही समय बाद एक दिन दोपहर में ल्यूक की माँ ने संयोग से उसके हाथों में लिपटा हुआ एक छोटा-सा रुमाल देखा जब वह खिड़की के सामने खड़ा रो रहा था।। उसकी माँ ने वह रुमाल पहले कभी नहीं देखा था। ”
चूँकि किसी को तो इस चर्चा को आगे बढ़ाना ही था , इसलिए मैंने कहा कि छिछला प्यार चोटों , टूटी हड्डियों और सीने में दर्द का अपरिहार्य सहगामी होता
है। लेकिन मुझे यह मानना पड़ा कि खिलौने वाले हवाई जहाज का मामला अलग क़िस्म का था। वह हवाई जहाज ल्यूक को अपने जन्मदिन पर मिला था जिसके नोदक को रबड़-बैंड चलाता था।
“जब ल्यूक को यह तोहफ़ा मिला तो मुझे उत्थापक-यंत्र वाला अपना उपहार याद आ गया जो मेरी माँ ने मुझे तब दिया था जब मैं चौदह साल का था। और मुझे याद आ गया कि उसका क्या हुआ था। मैं बाहर बगीचे में था हालाँकि आँधी आने वाली थी। बादलों की गड़गड़ाहट साफ़ सुनाई दे रही थी। गली से लगे मुख्य दरवाज़े के पास उगे पेड़ के नीचे पड़ी मेज पर मैं उस समय मशीन को जोड़ रहा था। तभी किसी ने मुझे मकान में से पुकारा और मुझे एक मिनट के लिए भीतर जाना पड़ा। किंतु जब मैं लौटा तो मैंने पाया कि मेरा बक्सा और उत्थापक-यंत्र ग़ायब थे और मुख्य द्वार पूरा खुला हुआ था। निराशोन्मत्त हो कर चीख़ता हुआ मैं बाहर गली की ओर भागा लेकिन वहाँ कोई भी नहीं था। उसी पल सड़क के उस पार मकान पर बिजली गिरी।
“यह सब एक झटके में हो गया और मैं यही सब याद कर रहा था जब ल्यूक अपने हवाई-जहाज के खिलौने को उतनी ही खुशी से देख रहा था जितनी खुशी से मैंने अपने उत्थापक-यंत्र को देखा था। उसकी माँ मेरे लिए कॉफ़ी ले आई और हम आपस में सामान्य बातचीत करने लगे। तभी हमें एक चीख़ सुनाई दी। ल्यूक दौड़ कर कमरे की खिड़की तक गया था और वहाँ ऐसे खड़ा था जैसे वह खिड़की में से बाहर कूद जाना चाहता था। उसका चेहरा पीला पड़ गया था और उसकी आँखों से आँसू बह रहे थे। किसी तरह वह हमें बता पाया कि उसका हवाई जहाज वाला खिलौना हवा में मुड़ा था और आधी खुली खिड़की में से होता हुआ बाहर जा कर ग़ायब हो गया था। वह हवाई जहाज हमें अब कभी नहीं मिलेगा — ल्यूक बुदबुदाता रहा। वह तब भी सुबक रहा था जब हमें निचली मंज़िल पर शोर सुनाई दिया। तभी उसके चाचा यह ख़बर ले कर दौड़ते हुए आए कि गली के उस पार स्थित मकान में आग लग गई थी। अब आप समझे ? जी हाँ , थोड़ी शराब और लेना उचित होगा। ”