ट्रिप उसकी खुशी थी, आदत थी, ऊर्जा स्रोत था, मासिकचर्या थी।
कहता तो यही- मीटिंग पर जा रहा हूं, जैसे उसका बाप या बाप का बाप कहा करता होगा । पर जाता उनकी तरह तफरीह पर ही था।
सभी पीढ़ियों के नर आदम थे, स्वामी थे, ईश्वरावतार थे।
कहता तो यही- मैं दिल्ली जा रहा हूं, कलकत्ता, मुंबई जा रहा हूं- मीटिंग पर।
बहुत बार मीटिंग अन्तर्राष्ट्रीय होती- बैंकाक में।
घाट-घाट का पानी पीकर खूब खिले मन से लौटता- भीतर बाहर से संतुष्ट।
कहता तो यही कि भारत सरकार उसके मशविरों के बिना चल नहीं सकती।
शिक्षा विभाग की सारी ऊंचाइयां उसी द्वारा सृजित हैं।
वह सब समझती है। अब फर्क नहीं पड़ता।
इस सिलसिलेवार अनुपस्थिति और चाकरी से राहत में उसने अपने को संवार, तराश लिया है।
स्वास्थ्य केंद्र के क्रैश कोर्सो ने, वक्तव्य की भाषिक कक्षाओं ने उसे कुछ ऐसा पारंगत बनाया है कि अब इलाके की कोई भी सभा उसकी उपस्थिति,उसके वक्तव्य के बिना पूर्ण नहीं हो पाती।