जब कुंवर बेचैन जी के एक गीत ने एक युवक को खुदकुशी करने से बचाया था।
यह घटना खुद कुंवर बेचैन जी ने सुनाई थी। बहुत पहले एक बार वे सहारनपुर में आयोजित एक कवि सम्मेलन में रचना पाठ कर रहे थे। आयोजन स्थल में भीड़ के कारण आसपास के खंभों पर लाउडस्पीकर लटका दिए गए थे ताकि जो लोग अंदर नहीं आ सके, वे भी कवि सम्मेलन का आनंद ले सकें।वे बता रहे थे कि जिस समय देर रात उनका कविता पाठ चल रहा था, ठीक उसी समय एक युवक किन्हीं परेशानियों के चलते खुदकुशी करने के लिए घर से निकला। रास्ते में उसे कुंवर बेचैन जी की के गीत की ओजपूर्ण पंक्तियां सुनाई दीं।
अगले खंभे तक पहुंचने पर गीत के आगे की पंक्तियां सुनाई दीं। युवक को ऐसा लगा कि कुछ खास है इस गीत में जो ध्यान से सुना जाना चाहिए। वह युवक वहीं रुक गया और उसने अंधेरी रात में खंभे के नीचे खड़े होकर पूरा गीत सुना। गीत ने उसे खुदकुशी करने के अपने इरादे को बदलने पर मजबूर कर दिया और वह वापस चला गया।
सुबह उठकर उसने पहला काम यह किया कि उस आयोजन स्थल पर आया और पूछा कि रात को लगभग इतने बजे कोई कवि ये गीत गा रहा था, वे कौन हैं और कहां ठहरे हुए हैं? उसे कुंवर बेचैन के बारे में बताया गया। उनका पता पूछ कर वह उनसे मिलने गया और रोते- रोते पूरी बात बताई कि वह किन परेशानियों के चलते आत्महत्या करने जा रहा था और इस गीत ने उसे ऐसे बांधा कि उसने अपना इरादा त्याग दिया। वह दोबारा रोने लगा।
कुंवर बेचैन जी हैरान होकर उसे देखते रहे। उसे गले से लगाया और प्यार से समझाया कि जीवन कितना मूल्यवान होता है । कुंवर बेचैन जी बता रहे थे कि उसी दिन से उन्होंने उसे अपना दत्तक पुत्र मान लिया था। बाद में उस युवक ने इंजीनियरिंग की थी और आजीवन कुंवर बेचैन जी के संपर्क में रहा।
ये होती है कविता की ताकत।
कुंवर बेचैन जी अपने गीतों के जरिए हमेशा हमारे आसपास बने रहेंगे।