1.
मूल भाषा : अंग्रेजी
कवयित्री : डोना ऐशवर्थ
अनुवाद: ख़ान हसनैन आक़िब, भारत
मेरे आईने में मौजूद औरत
2.
मूल भाषा : उर्दू
कवयित्री : इरम रहमान, लाहौर
अनुवाद : ख़ान हसनैन आक़िब, भारत
क्या हम फिर से अजनबी हो जाएंगे?
तुम्हारी शरबती आँखों में
चमकती रौशनी
देख नहीं पाऊँगी
तुम्हारे मख़मूर लहजे में
धड़कती ज़िंदगी
मेरे कान सुनने को तरस जाएंगे
तुम्हारी ज़ुल्फ़ के लच्छे
उलझे हुए माथे तक आएँगे
मगर मेरे हाथ छूने को तरस जाएंगे
क्या वक़्त की करवट हमें जुदा कर देगी?
क्या गर्दिश-ए-दौरां (कालचक्र) हमें दूर कर देगी?
बढ़ते हुए फ़ासले कम नहीं हो पाएंगे?
सरहद के इस पार
और
सरहद के उस पार
दो बूढ़े
यूंही मर जाऐंगे?
क्या हम वाक़ई फिर से
अजनबी हो जाऐंगे?
जैसे वर्षानुवर्ष पहले
नामालूम थे हम
एक दूजे से अपरिचित थे हम
धीरे धीरे
क़िस्मत की कायापलट ने
जोड़ दिया हमें एक अंजान डगर पर
जहां पर ख़ुश गुमानियों का मौसम था
जहां मोहब्बतों के पंछी गुनगुनाते थे
जहां सहरा की रेत ठंडी थी
जहां के बन भी जगमगाते थे
बहुत दूर चले आए
अपनी ही धुन में मगन होकर
कि वापसी का रस्ता अब भूल गया है
दिल के दरीचे
एक और दुनिया में जा खुले हैं
दो अजनबी दो जिस्म मगर एक जान बन के मिले हैं
क्या ये जागती आँखों से बने
ख़्वाब उधड़ जाऐंगे?
क्या हम फिर से अजनबी हो जाएंगे?