ઓથાર (વાર્તા) :-सुश्री.मीनल दवे
मूल भाषा :- गुजराती
अनुवाद :- ओथार( कहानी)
अनुवादिका:- डाॅ.तस्लीम मंसूरी
हाथ कम्प्यूटर पर काम कर रहे थे, आँखें घड़ी पर। आज पहला मेमो पकड़ में नहीं आएगा, मिसेज राव भी सही कह रही हैं! यह सच है कि आज दस-बारह दिन बाद दफ्तर खुला है, इसलिए काम इकट्ठा हो गया है। लेकिन मेरी बहन, तुम अपने पतिदेव के स्कूटर के पीछे बैठोगी और घर जाकर गरम-गरम इडली-सांभर खाओगी। अगर इस ट्रेन के छूटने पर मुझे एक घंटे तक स्टेशन पर तपस्या करनी पड़े और दूसरी ट्रेन के खाली डिब्बे से निकल कर दो घंटे में घर पहुँचना पड़े, तो आप उस दर्द को कैसे समझ पाते ? लो, काम हो गया, और बाहर निकलकर रिक्शा भी मिल गया।
अरे भाई,जल्दी करो।आज शहर में कितने दिनों के लिए कर्फ्यू में छूट का ऐलान किया गया है।लोग ऐसे इधर-उधर भाग रहे हैं मानो उन्हें पिंजरे से आज़ाद कर दिया गया हो। ये पागल लोग हैं। अभी जरा से भी पटाखे फूटते हैं तब घर के सभी दरवाजे बंद हो जाते हैं। अभी स्कूटर और कार लेकर भले ही निकल पड़े हो ।
लो, इस सिग्नल पर अभी-अभी लाल बत्ती जली है। कंगाली में आटा गिला इसी का नाम है। सात रुपये तैयार रखे हैं ताकि आधा मिनट भी बर्बाद न हो। लोग स्टेशन से बाहर आते हैं, ट्रेन पकड़ने का निश्चय करते हुए, उसे पहले जाने दो! ये रेलकर्मी भी खरे हैं! गाँव के अंत में एक सीढ़ी बनाई गई है, और ट्रेन चौथे प्लेटफार्म पर चलने वाली है। दौड तो लगाऊँ। लो, ये, ये आखिरी दो कदम बचे और ट्रेन चल पड़ी। अब बजाओ मंजीरे और गाओ भजन!
चाय वाला कहता है, बहन, अब आपको एक घंटा बैठना होगा। कैसे देख रहा है देखो तो! प्लेटफार्म पर कोई यात्री नहीं है। अभी दो मिनट पहले कितने मनुष्यों की भीड़ रही होगी और अब पत्थर गिरते ही गौरैया उड़ जाती हैं वैसे सब फुर …!
क्षणिक सोचूं स्मिता के वहाँ चली जाऊं। यहाँ एक घंटा बैठने के बाद ट्रेन में भी कंपनी मिलेगी या नहीं, यह सवाल है। हवा में अभी भी डर की गंध है। चायवाला मुझे देखता है तब भी मुझे डर लगता है कि कहीं गर्म चाय का बर्तन मेरे ऊपर न डाल दे, है न? कौन जानता है कौन सी नस्ल? हम नात- जात में विश्वास नहीं करते, धरम – करम में विश्वास नहीं करते, क्या वह यह जानता है? वह मेरी बिंदी देखता है, वह मंगलसूत्र देखता है। नहीं, नहीं, क्या सभी आदमी ऐसे थोड़ी न होते हैं? प्यास लगी,लेकिन पर्स में देखा तो पानी की बोतल खाली थी।
लाओ, पी.सी.ओ.से घर पर कॉल कर दूं और पानी एवं मैगज़ीन ले लूंगी। विक्रम ने ही फोन उठाया। दूसरी मेमो में आने की बात सुनकर चिढ़ गए । लेकिन, मैंने फोन रख दिया। फोन पर लटकी उनकी चिढ़ी हुई आवाज मेरे कानों तक नहीं पहुंच पाई।पी.सी.ओ वाले ने सलाह दी, “बहन, इतनी देर तक अकेले ट्रेन में मत जाओ। अब तक की बात अलग थी। अब जाना ठीक नहीं हैं।”
इन दस दिनों में क्या बदल गया? मनुष्य ने रोना छोड़ दिया? मनुष्य प्रेम करना भूल गया? प्रसव बंद हो गया? फूल खिलने के बजाय झड़ रहे हैं? कुछ नहीं बदला है। फिर ये डर, यह भय, यह शंका का माहौल क्यों?
बुक स्टॉल की ओर देखा। अखबार में वही नंबर गेम, मौत का जादू, आग का खेल, गोलियों की भागदौड़, दो मैगज़ीन लेकर बेंच पर जाकर बैठ गयी।
प्लेटफार्म पूरी तरह खाली है। चाय की लारी का चूल्हा बुझ गया है। पकौड़े का तेल ठंडा हो गया है। कोल्ड ड्रिंक की बोतलें कूड़ेदान में हैं। स्टॉल पर काम करने वाले लड़के सो रहे हैं। पॉलिश वाला लंगड़ा लड़का घोड़ी का तकिया बनाकर सो गया है । लेकिन मेरी बेंच के पास बैठा कुत्ता बेचैन है। उठता है, गोल-गोल घूमता है, मुँह उठाता है और रात भर भौंकता है, कान उठाता है और देखता रहता है। वह सशंकित बैठा रहता है। कुछ देर के लिए पैर और सिर को पास लाकर उन्हें गोल-गोल घुमाकर पड़ा रहता है । सामने वाले प्लेटफार्म पर दो कुत्ते हाँफ रहे हैं। क्या उन लोगों से यह डरता होगा?
पढ़ते-पढ़ते अचानक मुझे ध्यान आया कि एक औरत मेरे पास आकर बैठ गयी है। काले बुर्के में उसके हाथ के अलावा कुछ भी दिखाई नहीं दे रहा है। साथ में एक बड़ा बैग हैं। मुंह पर जाली है, लेकिन उसमें से उसकी आँखें नहीं दिखतीं। फिर भी इतना तो ख़्याल आता है कि वह मुझे देख रही है ।
पूरे प्लेटफार्म पर इतनी खाली बेंचें हैं, फिर भी वह मेरे पास ही आकर क्यों बैठी? इसका इरादा क्या है? क्या उसके बैग में बम-वम तो नहीं है? मान लीजिए कि बैग रखकर चली जाती है और बम फट जाए तो? मेरा क्या होगा ? मेरे पति और बच्चें अकेले रह गए तो? शायद ऐसा नहीं होगा। वह बेचारी चुपचाप बैठी है लेकिन चुपचाप बैठी है इसलिए कुछ भी नहीं करेगी ऐसा कह तो नहीं सकते न ? खड़ी होकर दूसरी बैंच पर चली जाऊं? खड़ा ही नहीं हो पा रहा। पैर खंभे की तरह हो गए हैं। जीभ तालू से चिपक गयी है। हाथ से पर्स को करीने से पकड़ रखा है। इस सर्दी की शाम मेरे माथे से हाथों पर पसीने की बूंद गिरती है।
‘क्यों बहन, कहाँ चले?’ दाल वाला चिमन मेरे लिए देवदूत बनकर आया। अब रगों में रक्त संचार शुरू हुआ, मानो संचार बंधी से मुक्ति की घोषणा की गई, “बहुत देर हो गई? वह तो चली गयी।’ मुस्कुराया और सिर हिलाया। अब भी मुंह खोलने से डर लग रहा है,अगर आवाज काँप गयी तो?
यहाँ क्यों बैठे हो? उसने मुझे खड़े होने का इशारा किया। ‘अभी तो ऐसे में इस तरह बैठना चाहिए ?’ लेकिन मेरे पैरों में अभी भी उठने की ताकत नहीं है। चिमन मेरी मूर्खता पर खड़ा होकर हँसकर चलने लगा।
उसकी बात सच थी, मुझे उठना चाहिए। क्या बगल वाली पर भरोसा किया जा सकता है? पर्स से चाकू निकाल कर हिला दे तो किसी को पता भी नहीं चलेगा। अरे, एक लात मारे तो मैं नीचे गिर जाऊं। उसके हाथों को देखकर लगता है कि वे किसी आदमी की तरह चौड़े हैं! कहीं कोई खूंखार खूनी तो बुर्का पहन कर नहीं बैठा होगा न? अब? मैं कैसे खड़ी हो सकती हूँ? कुबुद्धि कहा सूझी कि अभी जाने के लिए तैयार हो गई? हे मेरे राम, सलामत पहुंचाना।अगर ये कुछ करेंगी तो मैं कह दूंगी कि औरत, तुम्हें जो चाहिए ले लो, लेकिन मुझे मत मारो। डर के मारे गला सुख गया। हाथ जमे हुए हैं। अगर कोई आता दिखे तो यहीं से खड़ी हो जाऊं। मैं अपनी आँख के कोने से प्लेटफार्म के किनारे पर नज़र डालती हूँ, लेकिन मुझे कोई दिखाई नहीं देता। सारे लोग कहाँ गये?
अभी कल तक की ही तो बात है रेलवे स्टेशन के प्लेटफार्म और ट्रेन के डिब्बे लोगों से भरे हुए रहते थें। पैर रखने की जगह नहीं मिल रही थी। और वह महिला डिब्बे जिसमें आपको हर दिन बैठना पड़ता है? एक स्टेशन से दूसरे स्टेशन पर महिलाओं का तांता लगा हुआ है, कुछ छलनी से चने के दानों की तरह बाहर गिर रहे हैं, धीरे-धीरे गिर कर अपनी जगह पर बैठ रहे हैं, पर्स और थैलियाँ खुल रही हैं, तुवर, पापड़ी, मटर, हरा लहसुन फूल कर बाहर आ रहे हैं। कहीं थैलों से रंगीन धागे निकाले जा रहे हैं और साड़ी या कुर्ते पर फूल खिल रहे हैं, कहीं स्वेटर बुने जा रहे हैं, कहीं पापड़-चटनी-अचार-मसालों के पैकेट बेचे-खरीदे जा रहे हैं। सास-ससुर या पति के अत्याचारों पर रोती-बिलखती महिला के आंसू बह जाते हैं, ऑफिस के खट्टे-मीठे अनुभवों का आदान-प्रदान होता है, सगाई-शादी की मिठाइयाँ भी यहाँ दी जाती हैं, कभी-कभी लड़ाई-झगड़ों का सिलसिला भी चलता रहता है । साथ ही रामरक्षा कवच और गायत्री मंत्र का पाठ पढ़ाया जा रहा है, थोड़ी जगह बनाकर आसन बिछाकर नमाज भी पढ़ी जा रही है । स्टेशन आता है और खाली जगह चली जाती है। आज वो चेहरे कहां गए? वो तुवर-मटर-लहसुन-पापड़-मसाला बैग? और उसकी जगह दिख रहे हैं भयत्रस्त चेहरे और संशय से भरी थैलियाँ। इनसे बचें तो कैंसे ?
अरे, ट्रेन आ गयी,और पता ही नहीं चला? वह महिला डिब्बे में चढ़ गयी और आगे-पीछे ही वह पर्दानशीं भी आ गयीं। हे भगवान, यह मेरा पीछा क्यों नहीं छोड़ती? डिब्बा बिल्कुल खाली है। वहाँ बामुश्किल दो या तीन महिलाएँ हैं। एक मछली वाली,सीट पर अपनी खाली टोकरी रखकर सो रही है। भले ही टोकरी की गंध आ रही हो, लेकिन कोई बैठा हो, तो कितनी राहत मिलती है? वह तो सामने आकर ही बैठ गयी।
बाहर अंधेरा हो रहा है, काले बुर्के की तरह। अँधेरे के इस सागर में कहीं भी प्रकाश की कोई रेखा नहीं है जिससे चिपक कर तैरा जा सके। मैं क्या करू, कुछ सूझता नहीं।मैंने अंधेरे से बचने के लिए, काले बुर्के से बचने के लिए, अदृश्य, लेकिन लगातार मुझे घूरने वाली बुर्के वाली की आँखों से बचने के लिए अपनी आँखें बंद कर लीं। क्या कर रही होंगी वह? लोग कहते हैं कि इस पर भरोसा नहीं किया जा सकता । छुरी निकालकर कब तुम्हें हलाल कर दे, पता नहीं चलेगा। हसीना हमारे साथ कॉलेज में पढ़ती थी।एस.वाई में रहते हुए उसके भाई ने उसकी भाभी की चाकू मारकर हत्या कर दी। अगर यह महिला भी ऐसा ही करें तो क्या होगा?
कोई मुझे नींद से जगाने के लिए हिला रहा था। जब आंखें खोलीं तो सामने बुर्के वाली औरत खड़ी थीं। हे भगवान, इससे क्या होगा? किसको चिल्लाऊँ? वह तो पीछे आराम से सोती है। यह मुझे मार डालेगी तो उसको पता भी नहीं चलेगा। चलती हुई ट्रेन से कूद जाऊ? हे राम, मुझे बचा लेना। कल से इस ट्रेन से नही आऊंगी।अरे,नौकरी ही नहीं करूंगी। भाड़ में जाए अपडाउन। एक समय भूखे रहेंगे,लेकिन ओथार सहा नहीं जाएगा ।
‘बहनजी,बहनजी! बुरके वाली बुला रही हैं। मेरा स्टेशन आ गया। अच्छा हुआ आप यहां बैठी थीं, वर्ना मेरी तो हिम्मत ही नहीं थी, इस माहौल में अकेले जाना…आप समझती है न?’ अरे,वह भी डरती थीं! मेरी तरह ही! और मैं उससे डरती थीं। मेरी हँसी निकल पड़ी ।
‘इसमें डरने की क्या बात है? मैं तो हर रोज अपडाउन करती हूं।’ मेरी आवाज ट्रेन की व्हीसल को दबाता हो ऐसी निकली।
उसने मेरे हाथ पर हाथ रखकर ‘खुदा हाफ़िज़’ कहा। उसके भारी हाथों में ऊष्मा थीं। उस नमी में मेरी हथेली का पसीना मिल गया। स्टेशन पर गाड़ी खड़ी रहीं। उसकी बड़ी बैग को उतारने में मदद की। बैग हलका सा लग रहा था। ट्रेन चली। स्टेशन के हल्के से प्रकाश में एक आकृति धीरे- धीरे पिघलने लगी ।
मछली वाली ने जम्हाई ली। आलस मरोड़कर टोकरी में से एक थैली निकालकर सेमफली बीनने लगी। डिब्बे में मछली की और पसीने की बदबू से सेमफली की लिलाश फैल गई। बाहर अंधकार में चमकते तारे मुझे घर की दिशा तरफ का मार्ग बताने लगे।