आज वे काफी प्रसन्नचित्त और मोबाइल थे। उन्होंने सुबह- सुबह अपने कमरे में रूम फ्रैशनर का स्प्रे किया, गर्मागर्म सैण्डविच के साथ चाय ली और हाई वाल्यूम पर टी.वी के यू ट्यूब से सिनेमाई गीत लगा लिए। ग्यारह बजते- बजते वे सफारी सूट पहन, सपाट सिर पर फ्लैप वाली टोपी रख चल दिए।
बीते दो-तीन दिन से वे काफी एक्टिव हैं। उनके कमरे से उठापटक की आवाजें आती हैं। रोज बाजार से खरीददारी करके आते और शॉपिंग बैग्स अपनी गाड़ी में रख कर अंदर आ जाते। जब पत्नी ऊपर की मंजिल पर हो, दोपहर की नैप ले रही हो, या लैपटॉप पर अतिरिक्त व्यस्त हो, वह चुपके- चुपके और दबे पांव शॉपिंग बैग उठाकर अपने कमरे तक ले आते। पूरे ठाठ और संवेगातिरेक के साथ दिल्ली, मुंबई, कोलकाता क्वालिटी टाइम बिताना उन्हें अच्छा लगता।
पत्नी को पूर्वाभास हो जाता। यात्रा बोध उसके कमरे तक सरकने लगता। एक हाउसवाइफ- दूसरे दर्जे की हैसियत- दिन रात एक ही बात- यह किया तो क्यों किया, यह नहीं किया तो क्यों नहीं किया? छुट्टी के दिन जैसा उल्लास रगों में दौड़ने लगता। सांसे तक उत्फुल्ल हो आती। पहले दिन पार्लर जाएगी तीन घंटे। दूसरे दिन शॉपिंग मॉल में समय बीतेगा, तीसरे दिन किसी सहेली को बुला क्वालिटी टाइम व्यतीत करना उसे बहुत-बहुत अच्छा लगता। बस इतनी ही ताजी हवा उसके लिए काफी थी।