सेवानिवृत्ति
श्रीकांत जी लगभग अड़तीस वर्ष की लम्बी सरकारी सेवा सफलतापूर्वक पूर्ण करने के बाद जुलाई माह में सेवानिवृत्त होने वाले थे । बड़े उत्साहित और प्रसन्न थे । ज़िंदगी भर भाग -दौड़ के बाद अब परिवार के साथ रहने का अवसर मिला है, अब ज़िन्दगी सुकून से गुजरेगी, ऐसा सोच कर खुश हो रहे थे ।
३१ जुलाई को सेवानिवृत्ति होनी थी । मुझे २५ जुलाई को मिले तो बहुत अधिक उदास थे । मैंने कारण पूछा तो पहले आनाकानी करते रहे फिर बताने लगे । उन्होंने बताया कि कल रात को मैं बाथरूम की ओर जा रहा था और जैसे ही बड़े बेटे के कमरे के आगे से गुजरा तो मुझे सुनाई दिया, “ यह बूढ़ा अब तो सब दिन घर पर रहेगा, कैसे निभा पायेंगे “ बड़ी बहू शायद बेटे से पूछ रही थी । बाथरूम से वापस कमरे की तरफ़ जा रहा था तो छोटी बहू के शब्द मेरे कानों में पड़े। वह छोटे बेटे को समझा रही थी कि पाँच अगस्त को एक रेलगाड़ी यहाँ से तीर्थयात्रा पर जा रही है, मम्मी-पापा को भी भेज देते हैं, कम से कम एक माह तो घर में शान्ति रहेगी ।
यह सब सुनकर श्रीकांत जी का सेवानिवृत्ति का पूरा जोश ही ठंडा हो गया । मैंने उन्हें समझाया कि आप विचार न करें, धीरे धीरे सब ठीक हो जाएगा ।
सेवानिवृत्ति की तारीख़ से एक दिन पहले सूचना मिली कि श्रीकांत जी नहीं रहे । दिल को गहरा धक्का लगा । ऐसा लगा मानो श्रीकांत जी कह रहे हैं- “ मौत घरवालों की तुलना में अधिक आतुरता से बाँह फैलाये स्वागत करने को तैयार थी ।
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परिवर्तन
आलोक जी बहुत ज़्यादा आदर्शवादी थे । क्या सही है और क्या ग़लत है, इस पर उनका व्याख्यान चलता रहता था ।
एक बार उनके पड़ौस में रहने वाले चावला साहब की पुत्री ने विजातीय लड़के से प्रेम विवाह कर लिया । आलोक जी को आदर्श की बातें करने का सुअवसर मिल गया । जहां कहीं भी खड़े होते लोगों के सामने प्रेम विवाह का प्रसंग छेड़कर आदर्श की बातें शुरू कर देते, कहते-“ आजकल के मां-बाप बच्चों को संस्कार नहीं सिखाते, बच्चों को बहुत अधिक छूट दे रखी है, शर्म तो आजकल ख़त्म हो गई, डूब मरने जैसी बात है, समाज में मॉं- बाप को मुँह दिखाने लायक़ नहीं छोड़ा । आदि आदि
लगभग एक बरस बाद संयोग से आलोक जी की लड़की घर से ग़ायब हो गई और दो दिन बाद पता चला कि लड़की ने प्रेम विवाह कर लिया है ।
आलोक जी इस बार जब घर से बाहर निकले तो उनके विचार कुछ इस प्रकार थे, “ शिक्षा ने मानसिक संकीर्णता को समाप्त कर दिया है, आज के बच्चे जाति-पाँति में विश्वास नहीं करते, मानसिक विकास ने बच्चों को इस योग्य बना दिया है कि वे स्वयं अच्छे निर्णय ले सकते हैं, कब तक बच्चे अपने मां-बाप की अंगुली पकड़ कर चलते रहेंगे, शादी पर लाखों का खर्च करना दिखावा है और व्यर्थ है, आदि आदि “
सुनने वालों को लगता था किसी ने ठीक ही कहा है, “ परिवर्तन प्रकृति का नियम है ।