जातियों में बँटी रहती है जरूर
मगर भूख का कोई धर्म-ईमान नहीं होता।
पाक नंगी दिख जाए
या किसी छदम पहनावे से ढकी
सादगी से सामने पड़ जाए या कपट श्रंगार किए
पेट की कुलबुलाहट से कुदरती निकले
या पैदा की जाए किसी दिमागी ख़ुराफ़ात में;
आदम भूख, वहशी भूख
मर्दाना भूख, जनाना भूख-
दबंग भूख या सिमटी-सकुचाई सी
भूख, भूख ही होती है
इसका कोई धर्म-ईमान नहीं होता।
भूख होती है शोहरत और नाम की
हैसियत के हिसाब की
भूख होती है ऐशो-आराम की
भूख विश्वास की, प्यार-दुलार की
भूख हथियाने की, भूख अधिकार की
भूख तन की, भूख मन की
भूख मिटती नहीं कभी
भूख के पेट से भूख ही पैदा हुई है आज तक
किसी चिर-तृप्ति का अहसास नहीं
हटती नहीं, मरती-मिटती नहीं
पैदा हो बढ़ती ही रहती है
परजीवी अमरबेल सी पाँव पसारे
बिना जड़ और पत्तों के, तन में-
भूख का कभी कोई धर्म-ईमान नहीं रहा
तभी तो भूख जिंदा है अनंत काल से।