रूबी और रोहन दोनों अभिन्न युगल प्रेमी आँखों में आँखें डाल कर जब देखो संग साथ डोलते फिरते थे। एक दूसरे में पूरे के पूरे समर्पित। मेडिकल कालेज के प्रवेश द्वार पर ही उनकी आँखें बिल्कुल फ़िल्मी स्टाइल में टकरा गई थी।
अपना भारी भरकम सूटकेस, ठसाठस भरा एयर बैग, कंधे पर लटका बड़ा सा पर्स! ऑटो से उतार कर जब वो गर्ल्स होस्टल के सामने खड़ी खड़ी कभी खुद को कभी होस्टल की बिल्डिंग को और अपने असबाब को देख रही थी।
“मम्मी ने इतना सामान भरवा दिया है कि बस कुछ मत पूछो। अब यहाँ क्या कोई कुली मिलेगा जो समान उठाकर कमरे तक पहुँचा दे!”
“कुली हाज़िर है।” छह फुट बाँका जवान सुंदर सुडौल लड़के ने फ़िल्मी स्टाइल से रूबी का सूटकेस उठा लिया। “सेवा में हाज़िर, रोहन कपूर।“
दोनों खिलखिलाकर हँस पड़े।
न पता पूछा, न ठिकाना, न जात पूछी, न आगा पूछा न पीछा, कौन है और भविष्य में क्या करेगा कुछ नहीं। वो दिन और बाद के सारे दिन, कॉलेज के लिए तैयार होकर रूबी जैसे ही निकलती, वो झट से उसके कदम से कदम मिलाकर चल पड़ता। उन्हें देखकर लड़के सीटी बजाते। प्रतिउत्तर में ये भी सीटी बजाते।
अब कॉलेज में मशहूर उनकी कहानी हो गई थी, वो इसकी और वो उसका दीवाना हो गया था, पर कभी न कभी तो इन लव बर्ड्स को किसी पेड़ के तने पर ठहरना था। कॉलेज की छुट्टियाँ पड़ती जबरन घर जाते। रहते एक ही शहर में थे, सो छुट्टी में भी मिलते रहते। रूबी के घरवालों को रोहन बड़ा प्यारा लगा, वो भी डॉक्टरी की पढ़ाई कर रहा था, घर-बार सब बढ़िया। रोहन के माँ बाप व छोटे भाई को भी रूबी खूब भा गई थी। वो बिना रुकावट उनके घर आया ज़ाया करती थी। भविष्य की बहुरानी, रूबी को भी ख़ूब अच्छा लगता था। रोहन की माँ बड़े सरल स्वभाव की थीं। कोई ज्यादा तीन पाँच नहीं करती थी। स्वादिष्ट खाना बनाती और टीवी ख़ूब देखती सारे सीरियल उन्हें याद थे और सीरियल में घट रहे टकराव व सास बहू के पैंतरे देखकर कहती, मैं तो अपनी बहू को कभी परेशान नहीं करूँगी। रूबी भी प्यार से उनकी गोद में पसर जाती थी।
दोनों ने एम बी बी एस कर लिया था और पर स्पेशलिस्ट भी बनना था और रूबी ने गाइनोक्लोजिस्ट में एडमिशन ले लिया और रोहन ने सर्जरी में। पढ़ाई व काम इतना अधिक था कि उन्हें मरने की फुरसत नहीं थी। हॉस्पिटल्स रेसीडेंट्स के सहारे चलते हैं। सीनियर डॉक्टर बाद में दर्शन देते हैं। सारी गधा मजूरी रेजिडेंट डॉक्टरों से करवाई जाती है। एडमिशन से लेकर केस हिस्ट्री व उन्हें मॉनिटर करना। जब तक वे ऑपरेशन टेबल तक जाते, डॉक्टर आते और ख़ूब फटकार लगाते फिर जब वे चाक़ू लेकर मरीज़ पर चीर फाड़ करते और साथ ही साथ इनको ट्रेनिंग देते।
तीन साल होने को आए पर रोहन को एक बार भी सर्जरी का मौक़ा नहीं मिला। इधर रूबी दर्जनों डिलीवरी करवा चुकी थी पर बडा ऑपरेशन उसे भी करने को नसीब नहीं हुआ था। दोनों मेहनती थे, दोनों खूब पढ़ते थे। पर डॉक्टर मिताली जो सर्जरी में रोहन के साथ पढ़ रही थी, उसने रोहन की ओर इशारे करना शुरु कर दिया था। वो उसे अपनी ओर आकर्षित करने का भरसक प्रयत्न करती, पर रोहन उसकी तरफ़ उस तरह नहीं देखता था। सर्वविदित था कि रूबी के लिए रोहन है और रोहन के लिए रूबी, पर मिताली का दिल रोहन पर आ गया। अब दिल ही तो है, दिल पर किसी का ज़ोर नहीं। मिताली ने तिकड़म लगाने की ठानी। आख़िर रूबी उसके पिता के नीचे पढ़ रही थी। उसके पिता कॉलेज के सीनियर गायनोक्लॉजिस्ट थे और अपनी बेटी को बहुत प्यार करते थे। मिताली न केवल बहुत होशियार थी, वो बड़े स्मार्ट कपड़े पहनती, हाई सोसायटी में उठना बैठना वीक एंड पर बड़े क्लबों में जाना, स्वीमिंग करना और न तो शराब न कबाब से परहेज़।
रोहन मध्य वर्ग के परिवार का लड़का था। उसकी एक छोटी बहन थी बड़ी प्यारी पर वो थोड़ी बौद्धिक रूप से कमजोर थी। वैसे सब काम कर लेती थी, पर अधिक पढ़ाई नहीं कर पाती थी। दो बार दसवीं में फेल हो गई और बड़ी मुश्किल से बारहवीं कर पाई थी। पढ़ाई की जगह उसे ब्यूटी पार्लर का कोर्स करवा दिया और एक पार्लर में जॉब करने लगी थी। रोहन चाहता था जल्दी से वो सर्जन बन जाऐ और अपनी प्यारी बहना के लिए एक पार्लर बनवा दे! पर! सर्जन बनने का उसका सपना पूरा ही नहीं होने आ रहा था। कितनी भी मेहनत कर लें उसके नम्बर कम रहते और फ़ाइनल एग्जाम के नजदीक एक दिन मिताली ने रोहन को क्लब में न्योता दिया। वहाँ वो ड्रिंक लेने लगा था और उस दिन उसने कुछ ज़्यादा पी ली या शायद उसे पिला दी गई और पूरी फ़िल्मी घटना के समान उसने अपने को अर्ध नग्न अवस्था में मिताली के बिस्तर पर पड़े पाया। होश आते ही वो बौखला गया। उसे कौन वहाँ लाया? पूछने पर मिनाली ने बताया कि रोहन ने ही मिताली को क्लब के रूम मे बुलाया था और वहाँ उसने कहा
“मैं रूबी के चंगुल से निकलना चाहता हूँ। मैं तुम्हें बहुत चाहता हूँ मिताली।”
“ मैने ऐसा कब कहा?” पर विडियो में सब सुनाई पड़ रहा था। हतप्रभ और बौखलाया बावला सा रोहन तेज़ी से वहाँ से भाग खड़ा हुआ।
फ़ाइनल सिर पर, यहाँ यह बखेड़ा उठ खड़ा हुआ उधर रूबी भी बडी परेशान थी । एक दिन रूबी रोहन से मिली और फूट फूट कर रोने लगी। पिता की उम्र के डॉक्टर उसे गंदे इशारे कर रहे थे। सीनियर डॉक्टर है, जवान बेटा बेटी घर पर है और लड़कियों को गन्दी नज़रों से ताक़तें हैं। जहाँ मौका मिलता है पेशेंट के बहाने हाथ छू लेते है जब देखो तब लड़कियों के वक्ष की ओर घूरते रहते हैं। हम सब मोटा दुपट्टा पहनने लगे हैं।
“कल मुझे कहने लगे तुम पर पिंक कलर बड़ा सूट करता है। मेरी तो जान ही निकल गई मेरे इम्तहान में इंटरनल तो वो ही है। फेल कर दिया तो नौ साल की पढ़ाई गई ख़ाक में। क्या करूँ कुछ समझ भी नहीं आ रहा है। पढ़ाई में मन नहीं लग रहा।“
वे दोनों देर रात तक बैठे बस रोते रहे, रोते रहे, रोते रहे।
मिताली को ठुकराना माने एम डी में फेल, एम डी में फेल माने करियर चौपट। ब्रिलियंट रोहन कपूर ने इस बार अपनी ब्रिलियंसी संसार की प्रैक्टिकल शाला में झोंक दी। उसने रूबी से कहा वायदा करें जब तक मैं और तुम अपनी अपनी परीक्षा नहीं दे लेते, हम एक दूसरे से मिलेंगे नहीं। चाहे, कोई कुछ भी कहें; तुम मुझसे और मैं तुम से दूर रहूँगा। हमारा यह नाटक सबको रियल लगना चाहिए।
दोनों ने एक दूसरे से मुँह मोड़ लिया । कॉलेज में सुर्खियों में समाचार जंगल की आग के समान फैल गया और उन्हें देख कर गंदे गीत गाते। कोई पीछे – पीछे गाता “ दो हंसों का जोड़ा बिछुड़ गये रे —— “ तो कोई राग अलापता “ तू नहीं और सही और नहीं और सही“। कोई स्वयं से दुखी होता और उन्हें देख कर सुनाता, “ देख ली तेरी खुदाई बस मेरा दिल भर गया!”
डिपार्टमेंट अलग थे। अतः रास्ते भी अलग थे। यदि गलती से आमना सामना हो जाता तो वे नज़रें बचाकर चले जाते। दोस्तों ने बहुत पूछा कि क्या हुआ? दोनों में मौन व्रत ले लिया कोई प्रतिक्रिया नहीं करते। झुंझला कर रूबी की अभिन्न मित्र रेनू ने रोहन का रास्ता रोक लिया “क्या समझता है तू अपने को मेरी सहेली के साथ खिलवाड़ करेगा और हम तुम्हें छोड़ देंगे!”
ग़ुस्से में लाल पीला होकर रोहन बोला, “ तुमसे मतलब। हमारा निजी मामला है। “
ग़ुस्से में रेनू ने लगभग लगभग थप्पड़ ही मार दिया होता, यदि रूबी ने बीच बचाव नहीं किया होता। उसने रेनू को और सभी जितने लड़के लड़कियाँ वहाँ इकट्ठा हो गए थे, सबको सम्बोधित करते हुए हिक़ारत की नज़रों से रोहन को देखा और बोली, “इसका मन मुझसे और मेरा मन इससे खट्टा हो गया है। अब तक का साथ था, सो था; अब ये जाये भाड में। मैं अपनी लाइफ़ इसके साथ और नहीं रह ——-“ वाक्य समाप्त होने से पहले मिताली रोहन की बाहों में बाँहें डाल उसे वहाँ से ले जाते जाते बोली ,”अपना रास्ता नापो तुम सबके पेट में क्यों दर्द हो रहा है?” और दोनों बेशर्मी की तरह हँसते-हँसते चले गए।
रूबी के मित्रों और रोहन के मित्रों को दोनों को बड़ा क्रोध आ रहा था। उसकी चीप हरकतों को देखकर पर जब तक रूबी की ओर सहानुभूति दिखाते, तब तक तो रूबी अपने एक सीनियर की मोटर साइकिल पर सट कर बैठकर तेज़ी से भाग गई।
सब हतप्रभ रह गए। अपने कंधे उचका कर ‘हमें क्या?’ चले गए। नतीजन दोनों दोस्त विहीन हो गए। मिताली रोहन की छाया बन उसके साथ रहती, सुनने में आया था कि उसने मेन मार्केट में एक अच्छी दुकान देख ली थी। रोहन की बहन के लिए ब्यूटी पार्लर बनवा रही थी। तमाम इंटीरियर करवाना साजों सामान लगवाना बाहर बोर्ड लगाना और उसका उद्घाटन अपने पिता के हाथों से करवाना। रोहन जिस तरह मिताली के माता- पिता से मिल रहा था लग रहा था कि वो उनकी भावी जामाता है। रूबी सब देख सुन रही थी उसे पूरा यक़ीन था। कि रोहन पूरा नाटक रचा रहा है वो भी अपना पार्ट बखूबी निभा रही थी।
करते कराते इम्तिहान आ गए। थ्योरी दोनों ने दे दिया और अब बारी थी प्रैक्टिकल की। मेडिकल की डिग्री प्रैक्टिकल एग्ज़ाम पर सबसे ज़्यादा निर्भर करती है। छिपाकर एग्जामिनर को तरह तरह के नज़राने भी दिए जाते है । शराब – कबाब सब चलता है।
होशियार होना काफ़ी नहीं होता और इसका सबूत मिला, जब रूबी एम डी में फेल हो गई। रोहन पास हो गया। जिस दिन रिज़ल्ट आया रूबी का रो-रो के बुरा हाल था। वो बार बार रोहन को पुकार रही थी। उसकी सहेलियाँ रोहन के पास गई और रोहन को बुरा भला कहने लगीं ”चार पाँच साल उस लड़की को घुमाया और अब जब उसे तेरी सबसे ज़्यादा ज़रूरत है तू उससे मिलने भी नहीं गया।“
मिताली ने बड़ी पार्टी दी हुई थी बहुत सारे मेहमान बुलाए गये थे। रोहन ने मिताली से कहा, “ मैं अभी आता हूँ।” सीधा रूबी के कमरे की ओर भागा , वहाँ बड़ी भीड़ लगी थी। हाहाकार मचा था। हकका बक्का रोहन भीड़ को चीरता हुआ रूबी के कमरे में दाखिल हुआ कमरे का दरवाज़ा तोड़ना पड़ा था और सामने लटक रहा था, बेजान रूबी का शरीर।
दहाड़े मार कर रोहन रो पड़ा, “अरे कुछ देर तो इंतज़ार किया होता। नाटक का पर्दा गिरने तक तो रूक जाती।”